Book Title: Shrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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श्रुतसागर
नवम्बर-२०१८ ओ नी प्रथा एटली प्रचारमा नथी आवी; पण अइ परथी ए लखातो जाय छे। इत्यादि अनुषंगी शब्दो (Post-positions) व्याप्त छे; तरुणप्रभसूरि (सं. १४११) नी भाषाथी आ भाषा जुदी पडती नथी। अइ मांथी विभक्ति रूपोमां ए थयाना दाखला तरुणप्रभ मां पण मळे छे।।
लेखनशैलीने अंगे आ हाथप्रतोमा स्वरो जुदा पाडवामां आवेला छ। दा.त. भूषआं=भूषां; हणइया हणिया; मारइया मारिया; घइर घरि (व्यत्यय). लखवामां आ शैली छे तेथी कंइ उच्चार आम छूटा ज थतां हशे एम धारवा- नथी; परंतु बीजी हाथप्रतो जोवाथी मने लागे छे के उच्चार 'या' तरफ वळतो होवाथी आ प्रमाणे लखातुं हशे । तरुणप्रभमां लेखनशैलीनी आ प्रकारनी विशिष्टता देख्यामां नथी आवती।
अग्विीरानी हाथप्रत लखाएल सं.१५०७; परंतु मूळ गुजराती ग्रंथ विक्रमना पंदरमां शतकनो मध्यभाग होय एम लाग छ।
खुईअवलस्तार्थः [Collected Sanskrit Writing of Parsis] Part I Note No.२२५.
शुभ भला धर्म कार्यतणा सृजणहार नीपजावणहार स्वामी महाज्ञानी सर्व जाण तणा आराधनतणइ विषयइ हुं दिनमेक (?) सदा सर्वदा त्रिकाल नमस्कार स्तुति त्रिधा लिहुं प्रकार प्रहरकु करणहारू अवसर जालवणहार हउं किल साचिं शुभ भला धर्मकार्य पुहतां हुआं मने वचने कर्तव्ये करि लिहुं प्रकारे प्रहरऊ पहुरउं करूं आराधनातणुं पहर प्रहर अवरसर जालq इंत्रिकाल दिइन देवू जे कोई निकाल न जाळवे तहरहि स्वर्ग नही तेह नरकीउ तेह गर्दभ श्वान ॥
ऊपरनु अवतरण H1 नामे हाथप्रत (लख्या सं.१४७१) मांथी लेवामां आव्यु छे: आनुं आज लखाण NMRL1, नामे बीजी हाथप्रत जे नवी छे तेमां पण छे: परंतु संपादक H1 ऊपर ज आधार राखे छे एटले ऊपरनो पाठ H1 मांथी होय तो मने वचने कर्तव्ये; जालवु: जाळवे: इत्यादि. (जाळवे जाळवइ) । आ लखाणना काळy बीजु लखाण पण टांकुं छु।
इजिस्नि [Collected Sanskrit Writing of Parsis II] आमांथी नीचे टांचण आपता पहेलां एक वात कही देवी जोइए. आ हाथप्रतना लखाणमां त्रण जुदां पड़े छे । एक तो पंदरमाना अंतनी अने सोळमानी शरुआतनी भाषानु, सोळमाना अंतनी अने सत्तरमानी शरुआतनी भाषानुं अने अढारमानी भाषानु संपादके तारीखवार भेद पाड्या नथी परंतु आ पडो संस्थापके वापरेली हाथप्रतोनी तीरीखने आशरे पाडु छु.
(क्रमशः)
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