Book Title: Shrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
16
॥५१॥
॥५४||
॥५५॥
॥५६॥
श्रुतसागर
नवम्बर-२०१८ उपन्नु वर केवल नांण, महोत्सव करइ सुरासुर भांण। त्रिगडु रचइ सुरपति तिहां मिली, भविकजीवनी आस्या फली रयण जडित सिंघासण सार, तिहांकणि बइसई जगदाधार । अतिशय त्रीस अनइ वली च्यार, वाणी गुण पांत्रीस उदार
॥५२॥ छत्र शिर उपरि बिहु पखि चमर, वींजई हर्ष धरी करी अमर । धर्म उपदेश दीइं चिंहु मुखिइ, पर्षदा बार सुणइ अति सुखइ ॥५३॥ पुंडरीक प्रमुख हुआ अति भला, चउरासी गणधर गुण निला। उसभसेन प्रमुख मुनि कहुं, संख्या सहिस चुरासि लहुं ब्राह्मी सुंदरी प्रमुख माहासती, त्रिण लाख हुई गुणवती। श्रेयांस प्रमुख श्रावक सुजाण, लख्य त्रणि सहिस पंच प्रमाण सुभद्रा प्रमुख सुश्राविका कही, लख्य पंच चुपन सहिस सही। चउविह संघ थापइ जिनभाण, दिन दिन वाधइ अधिक मंडाण धनूष पंचसय प्रभुनु देह, वृषभ लंछन अति सोहइ तेह। गोमुख जख्य चक्केसरी सुरी, प्रभु शासन नित सानिधि करी त्र्याशी लाख पूरव गृहवाशि, वशिआ जगगुरु मन उल्हाशि। व्रत पाल्यूं पूरव लख्य एक, बुझव्या भविक जंतु अनेक
॥५८॥ सर्व आय पाल्यूं एटलुं, लाख चुरासी पूरव भलु। निर्वाण समय अष्टापद श्रृंगि, विश्वनाथ पहुचइ मनरंगि
॥५९॥ सहिस दस मुनिवरस्युं स्वामि, अणसण ल्यइ निज आतम कामि। माघ वदि तेरसी शुभ दिनई, बइठा ऋषभजी पर्यंकासणइ चउदसभक्त उपवाशि करी, मुगति वधू जेणि हेलां वरी। निर्वाण महोत्सव करइ सुर घणा, गुण गाइ श्री आदिजिन तणा पांचोटिमंडण श्री आदिजिणंद, दरिसन दीठइ परमाणंद। जिनमंदिर सुरमंदिर जिस्युं, पेखंतां मुझ हियडू हस्युं
॥६२॥ वीर निर्वाण पछी हवइ जुओ, बिसइ वरसनइ अंतरि हुओ। संप्रति राजा नाम प्रसिद्ध, जेणि बहु उत्तम करणी कीध
॥६३।। लख्य बारनइ पंच हजार, नविन प्रासाद कराव्या सार। छत्रीस सहिस्स वली जीर्ण उधार, प्रासाद कराव्या अति उदार
॥५७||
॥६०॥
॥६
॥
॥६४॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36