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SHRUTSAGAR
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November-2018
उपाध्याय भावहर्ष रचित ज्ञानपंचमीस्तवन
श्री गजेन्द्र शाह प्रस्तावना:___उद्योत, विद्युत, प्रभा, प्रकाश, उज्ज्वलता, तेज, रोशनी आदि शब्द अंधकार के प्रतिपक्षी हैं। ये सभी खद्योत से लेकर दीपक, तारा, नक्षत्र, चंद्र, सूर्यादि हेतु प्रयुक्त होते हैं। जगत के बाह्य अंधकार को दूर करने के लिए प्राकृतिक व कृत्रिम कई संसाधन उपलब्ध हैं। यहाँ जिस उद्योत की बात हम करने जा रहे हैं, वह बाह्याभ्यंतर, भौतिक व आध्यात्मिक सभी प्रकार के अन्धकारों को दूर करने वाली अचिंत्य शक्ति-ज्ञान की बात है। ज्ञान को सर्वप्रकाशक व सर्वसुखकारक कहा गया है। शास्त्रों में 'पढमं नाणं तओ दया' कहकर ज्ञान की प्रधानता दर्शाई गई है। ज्ञान-क्रिया में पहले ज्ञान है, रत्नत्रयी में भी ज्ञान ही प्रधान है, जो प्रस्तुत कृति में भली-भांति दर्शाया गया है। आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी म.सा. ने तो यहाँ तक कह दिया है कि 'कत्थ अम्हारिसा पाणि, सम दोस दुसिया। हा अणाहा कहं हुंता, जइ न हुज्ज जिणागमो' दुषम काल के दोष से ग्रसित हमारा क्या होता ! यदि जिनागम नहीं होते ! यह बात आज से हजारों साल पहले की है, जिस समय विपुल मात्रा में श्रुत उपलब्ध था, स्वयं हरिभद्रसूरिजी ने १४४४ ग्रंथों की रचना की थी। आज उसमें से क्या बचा है, वह हम सब जानते हैं। इस परिस्थिति में ज्ञान व ज्ञानी की सेवा, सुरक्षा हेतु कदम नहीं उठायेंगे तो हमारा क्या होगा ??? श्रुत व श्रुतधर के प्रति बहुमान भाव प्रगट करना आज के समय में अत्यंत आवश्यक है और वह भाव हृदय में उत्पन्न करने का एक प्रबल साधन यहाँ प्रकाशित की जाने वाली प्रायः अप्रगट 'ज्ञानपंचमी स्तवन' कृति है, जिसमें पहले ज्ञान की महत्ता दर्शाई गई है, तत्पश्चात् ज्ञानी की महत्ता बतलाकर अंत में ज्ञान हेतु ज्ञानपंचमी की आराधना कैसे करनी चाहिए, वह सुंदर ढंग से दर्शाया गया है। ___कृति में बहुश्रुत की महत्ता के सूचक १६ दृष्टांत नामों को हमने Bold किया है और कृति परिचय में उन सभी का क्रमशः परिचय दिया है, जिससे विषय को आसानी से ग्रहण किया जा सके। आशा है कि यह लेख पाठकों को ज्ञान व ज्ञानी के प्रति बहुमान भाव जगाने वाला व श्रुतप्रेमियों की भावना में अभिवृद्धि करने वाला बनेगा।
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