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November-2018
SHRUTSAGAR
27 कर्ता परिचय:
प्रस्तुत कृति की रचना साधुचंद्र गणि के प्रशिष्य व कुलतिलक गणि के शिष्य उपाध्याय भावहर्ष ने की है। कर्ता के हाथों लिखित सिद्धहेमशब्दानुशासन आख्यात अवचूरि' की प्रत के प्रतिलेखन वर्ष से विद्वान का समय विक्रम संवत १५९४ मिलता है। कर्ता की अन्य कृतियों में ७ सगपण गीत, आदिजिन स्तवन व वीसस्थानक विधि गर्भित शांतिजिन स्तवन प्राप्त होता है। प्रत परिचय:
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा की एकमात्र हस्तप्रत क्रमांक ३७७९७ के आधार पर प्रस्तुत कृति का संपादन किया गया है. दो पन्नों की प्रत में पहला पत्र अनुपलब्ध है। अवशेष रहे दूसरे पन्ने पर यह कृति उल्लिखित है। प्रतिलेखन पुष्पिका व लेखन वर्ष की सूचनाएँ प्रत में नहीं दी गई हैं। अनुमान से यह प्रत विक्रम की १८वीं सदी के पूर्वार्ध की संभव है। प्रत की लिखावट स्वच्छ, सुंदर व सुवाच्य है। गाथांक व विशेष पाठ को गेरु लाल रंग से अंकित किया गया है तथा पदच्छेदक लकीरों का भी उपयोग किया गया है। प्रत में ‘पांचमतवन' हंडी दी गई है, जो खंडित है।
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उपाध्याय भावहर्ष रचित
ज्ञानपंचमीस्तवन ॥॥ वीरजिणेसर वंदीयइ ए, त्रिसलादेवि मल्हार । वरतइ शासन जिह तणण(उ), वसमइ पंचम काल तिहां रत्नत्रय सार गिणि, दंसण नाण चरित्त । मुगति नहीं दंसण पखइ ए, ए जिनशासन तत्त चारित्र विण सिवपद काउ ए, नवि दंसण विण होइ। एह वात प्रगटी अछइ ए, उत्तरज्झयणइ जोइ जइ वि हु दरसण अति भलउ ए, तोई पहिलउ नाण । दरिसण लाभ सरूप गिणि, ए पहिलउ गुण जाणि धरमदास गणि इम कहए, वरतर नाण संप्पन्न । क्रियावंत स्युं एकलउ ए, दुइ जिम हेमरत्न
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