Book Title: Shrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
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SHRUTSAGAR
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कला प्रगट कीधी अभिनवी, बहुतिर कला पुरुषनी हवी । महिला कला चउसठि वर्ष्णवी, अनुक्रमइ जिनजीइ सवि सीखवी भरथ बाहुबलि प्रमुख उदार, सो बेटा हुआ कुलि शिणगार । सकल सतीमां मूलगी हवी, ब्राह्मी सुंदरी पुत्री अभिनवी जिनजीनइ हुओ बहु परिवार, युगलाधर्म्म निवारणहार । पुनरपि लोकांतिक सुर जेह, संयम समय जणावइ तेह त्रिणसइ अठ्यासी कोडिनुं दान, इंसी लाख वली ऊपरि मान । आपइ हेम वंछित देई मान, तेहनुं वरस लगई कहिउं मान दान संवत्सरी देई जिनराज, सकल लोकनां सार्यां काज । राजभार निज पुत्रनई दीइं, अनोपम संयम प्रभुजी लीइ बईसी सुदंसणा पालखी मांह, आवइ सिधारथ वन छइ जिहां । अशोक तरूवर तिहां छइ भलो, ते हेठलि स्वामी गुण निलो ज्येष्ठ वदि आठमि मनि मुदा, लोच करइ चिहु मुष्टी तदा । च्यार सहिस पुरुषवर साथी, संयम लीधुं श्री जगन्नाथि देवदुष्य वस्त्र एक खंधि धरइ, तिहांथी प्रभुजी विहार ज करइ । छठ्ठ भगत तपनइ पारणइ, पहुचइ आहार तणई कारणइ दिन दिन प्रति षट्जीवन पाल, जिहां घरि पहुचइ देव दयाल । कनक अश्व गज आदर घणइ, ल्यो ऋषभजी इम जन भणइ केवि कन्या शिणगारी दीइ, जिनजी कछु भि ते नवि लीइ । किम दीजइ प्रभुनइ जल आहार, मुगध लोक नवि लहइ विचार वात सुणी श्रेयांस कुमार, ल्यो बावाजी इखुरस आहार । करु अम्हारु पवित्र घरबार, वरसीतप पूरण करी सार कर्तुं पारणुं इखुरस आहार, त्रिभुवनि वर्त्यो जयजयकार । एक सहिस वरस परमांण, कर्म खेपवइ चतुर सुजाण वदि एकादशी फागुण तणी, निग्रोध तरु तलि त्रिभुवन घणी । अट्ठमभक्त जण विण तप करइ, शुक्ल ध्यान मनमांहि धरइ
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November-2018
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