Book Title: Shrutsagar 2016 09 Volume 03 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नर्मदासुंदरी कथा में अलंकार योजना जोली सांडेसरा जैसा कि हम जानते हैं, प्राकृत साहित्य भारत के लोक-जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। लोगों की छोटी से छोटी भावनाएँ, कठिनइयाँ, रहनसहन, विचार इत्यादि का सुंदर निरूपण प्राकृत साहित्य में दृष्टिगोचर होता है। यह इतना जीवंत होता है, कि उच्च वर्गीय साहित्य अर्थात् संस्कृत साहित्य में ऐसे वर्णन हमें देखने को नहीं मिलते। __ इसी भावना से प्रेरित होकर दूसरी सदी ईसा पूर्व में महाकवि हाल ने प्रकृत भाषा की गाथाओं का संकलन किया, तो लोक-जीवन में प्रचलित विचार और भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए प्रबल माध्यम थीं। यही कारण है कि संस्कृत के अलंकारशास्त्र के आचार्यों ने भी प्राकृत काव्यों को ही अपने काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया। भरत मुनि ने तो नाटकों में, स्त्री-पात्रों, दास-दासी इत्यादि के लिए इन प्राकृत भाषाओं की सिफारिश की। प्राकृत साहित्य ईसा पूर्व छठी शताब्दी से सत्तरहवीं शताब्दी तक दीर्घ कालखंड में फैला हुआ है। इसमें एक से एक उच्च कोटि के साहित्य अस्तित्व में आये। विमलसूरी, संघदास गणी, उद्योतनसूरी, आनंदवर्धन इत्यादि कवियों ने इस भाषा में काव्यरचना की। इन्हीं में से एक कवि हैं महेन्द्रसूरि । जिनकी नर्मदा सुंदरी कथा अति प्रचलित है। वैसे तो इस ग्रंथ में काव्यशास्त्र के अनेक गुण और तत्त्व भरे हुए हैं, परंतु हमने केवल इसमें प्राप्त अलंकारों की चर्चा को प्रस्तुत लेख का विषय बनाया है। नम्मयासुंदरी कहा के रचयिता महेन्द्रसूरी हैं और रचना काल वि.सं. ११८७ हैं। यह गद्य-पद्यमय है, किन्तु पद्यों की प्रधानता है। इसमें १११७ पद्य हैं और कुल ग्रंथ का परिमाण १७५० श्लोक है। इसमें महासती नर्मदा सुंदरी के सतीत्व का निरूपण किया गया है। 1. शोधच्छात्रा, प्राकृत-पालि विभाग, भाषा भवन, गुजरात युनिवर्सिटी अहमदाबाद। For Private and Personal Use Only

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