Book Title: Shrutsagar 2016 09 Volume 03 04
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 14 SHRUTSAGAR September-2016 कमलि जिम रमलि निरमलि करइ भमरओ, अम्ह मण तुम्ह गुण सामि तिम समरओ ॥५॥ ॥ इति श्रीधनपुरमंडन श्रीअजितजिन वीनती समाप्ता॥ छ। ॥ स्तवन-३॥ जिणि दीठई सवि रिद्धि वृद्धि सुख वसई निवासइं, जिणि दीठई सवि रोग सोग भय भावठि नासइं। जिणि दीठई सवि पामीइ मणवंछीअ आस, जयउ जिणेसर अजितसामि धनपुर कीअ वास ॥१॥ तुं जगठाकर माय बाप प्रभु तुं जगबंधव, पीड्यांपीहर गुणनिधान तुं महिमा वास । जयउ जिणेसर अजितसामि धनपर कीअ वास ॥२॥ आज जनम फल पामिओ धन दिन मझ आज, आज वरिस मझ घडिअ आज लेखइ जिन राज। तुम्ह दीठइ मज्झ सफल आज धन धन ए मास, जयउ जिणेसर अजितसामि धनपुर कीअवास ॥३।। तुं भवभ्रमणनिवारि सामि तु करूणासायर, तुं समरथ तुं धणीअ आज तुं गुणरयणा(य)र । भावठि भंजण करि पसाउ मज्झ पूरि हो आस, जयउ जिणेसर अजितसामि धनपुर कीअवास ॥४॥ प्रह ऊठेवि जे भणइं भावि नर नारी तुम्ह गुण, तिह घरि रंगि रमलि करई सुरतरु प्रभु अनुदिण। जां सायर रवि चंद ताम पतपउ निसि दीस, जयवंता सिरिअजितनाथ पूरू संघ जगीस ॥५॥ ॥ इति श्रीधनुरामंडण अजितजिन विनति समाप्ता॥ छ। For Private and Personal Use Only

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