Book Title: Shrutsagar 2014 10 Volume 01 05
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 6 यदि हम धन उपार्जन करें तो वह कैसे शान्ति देने वाला बनेगा? धर्म का जो साधन है, उस साधन का यदि दुरुपयोग किया जाए। सरस्वती के साधन का यदि दुरुपयोग किया जाए, तो वह दर्द और पीड़ा का कारण बनता है । हमने कभी इस तरह से सोचा ही नहीं, लिखकर असत्य की वकालत करके, अप्रमाणिकता से जीवन चलाकर, कितना हमने अपनी आत्मा के लिए अनर्थ उपस्थित किया है, कभी उसका हिसाब हमने देखा ही नहीं । OCTOBER-2014 पुराने जमाने में चौपड़ा रखा करते थे, हिसाब किताब के लिए दुकान पर । आपको मालूम होगा काली स्याही से, होल्डरों से चौपडा लिखा जाता था । दिवाली के दिन मुहूर्त करते समय उसी का प्रयोग किया जाता था । वह मांगलिक माना जाता है। हमारी परंपरा है। तो चौपडा लिखते-लिखते हमें मालूम है, उस समय ब्लोटिंग पेपर नहीं होता था, रेती रखी जाती थी। धूल सूखी हुई, यदि कहीं ज्यादा स्याही जम जाए तो उसे डाल देते। वह सूख जाती थी। स्याही और कलम ने आपस में मिलकर बड़ी मित्रता की, स्याही ने कहा- परोपकार पूर्वक अपना जीवन अर्पण कर देना, यह मेरी भावना है। तुम मुझे सहयोग दो । कलम ने कहा- ठीक है, मैं भी घिस - घिस कर अपना प्राण अर्पण करने को तैयार हूँ। दोनों के अन्दर बलिदान की बड़ी सुंदर भावना रही कि अपना बलिदान करके लोगों का हम पेट भरें। लोगों के जीवन निर्वाह करने में मदद करें, परिवार का भरण पोषण करने में सहायक बनें। आप देखिए! दोनों में कैसी सुंदर अपूर्व मित्रता है । कलम जैसे ही स्याही में डुबोया जाता है, स्याही का साथ मिलता है। दोनों में बड़ी अच्छी मित्रता रहती है। जैसे-जैसे कलम आगे चली, उसके पीछे स्याही सूखती हुई चली जाती है। मित्र के वियोग में, कवि की बड़ी सुंदर कल्पना है, वह स्याही अपना प्राण दे देती है । मेरा मित्र आगे चला गया उसके वियोग में मेरा जिन्दा रहना कोई मूल्य नहीं रखता । स्याही सूख जाती है, मर जाती है। कलम आगे चली जाती है । For Private and Personal Use Only कई बार आपने देखा होगा, लिखते-लिखते दो चार लाइन हम नीचे आ जाएँ और यदि कहीं स्याही जीवित रह जाए, सूखे नहीं। ऐसे में यदि पन्ना बदलना पड़े तो क्या करते हैं? वह धूल लेकर ऊपर डाल देते हैं। वह धूल क्यों डालते हैं? तेरा मित्र तुझे छोड़कर, कहाँ चला गया, मित्र के वियोग में तू अभी तक जीवित है। तेरे मुँह पर धूल पडे। हमारी परंपरा बड़ी अपूर्व वस्तु है। आत्मा को छोड़कर, धर्म को छोड़ कर

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