Book Title: Shrutsagar 2014 10 Volume 01 05
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजय हीरसरिजीना नामोल्लेखवाळीकेटलीक प्रतिलेखन पुष्पिकाओ हिरेन के. दोशी विक्रमनी १७-१८ मी सदीनी केटलीक पुष्पिकाओ अत्रे प्रस्तुत छे. आ प्रतिलेखन पुष्पिकाओ ज्ञानमंदिरमां संगृहीत प्रतोमा जोवा मळे छे. आ प्रतिलेखन पुष्पिकाओ प्रायः क्यांय नोंधायेल नथी. प्रतिलेखन पुष्पिकाओनो ऐतिहासिक सामग्रीमा नोंच-पात्र फाळो रह्यो छे. पुष्पिकाओमां समाविष्ट ऐतिहासिक विगतोने उजागर करवाना आशये श्रुतसागरना माध्यमे प्रतिलेखन पुष्पिकाओ प्रकाशित करी छे. ____वाचकोनी उपादेयता माटे पुष्पिकाओमां सौ प्रथम अनुक्रम त्यारबाद प्रतमां आलेखायेल कृतिनुं नाम, एपछी पत्नी विगतो अने त्यारबाद प्रत क्रमांक आपवामां आव्यो छे. आ अंकमा प्रकाशित प्रस्तुत पुष्पिकाओमां खास करीने आ जगद्गुरु पू. आचार्यदेव श्रीमद्विजय हीरसूरीश्वरजी म. सा. ना हयातीना समयमां अने स्वनिश्रामां लखायेली तेमज एमना नामोल्लेखवाळी पुष्पिकाओने स्थान आप्यु छे. पू. आचार्यदेव श्री हीरसूरीश्वरजी म. सा. नो जन्म वि. सं. १५८३ना मागशर सुद ९ना दिवसे पालनपुरमां थयो हतो. तेमज वि. सं. १६५२ना भादरवा सुद ११ने उना मुकामे एमनो काळधर्म थयो हतो. पूज्यश्रीना जीवन संबंधी विशेष विगतो जाणवा इच्छुक वाचकोए कवि ऋषभदासकृत श्रीहीरविजयसूरि रास के हीरस्वाध्याय भाग १-२नु अवलोकन करवा विनंती... १. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, पत्र संख्या - ९४, प्रत क्रमांक-३७४ संवत् १६३९ वर्षे भाद्रवा वदि १३ दिने गुरुवारे ॥ श्रीहीरविजयसूरिस्वर तल्शिष्य पंडित प्रकांडपंडित श्री५श्री विशालसत्यगणि तत्शिष्य तेजविजयगणिनाऽलेखि । दावड ग्रामे ॥ शुभं भवंतु ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ॥ २. कल्पसूत्र सह किरणावली वृत्ति, पत्र संख्या - २२१, प्रत क्रमांक-६७७ ___ श्रीहीरविजयसूरिशिष्य पं. कमलविजयगणि शिष्य श(शि)वविजयगणिनी प्रतिः ॥ For Private and Personal Use Only

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