Book Title: Shrutsagar 2014 10 Volume 01 05
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 20 OCTOBER-2014 उपयोग करने से ही तो आज ये दुर्लभ, महिमामयी हस्तप्रतें हम अपने हाथों में रखकर प्रत्यक्ष दर्शन करते हैं. इस दृष्टिकोण से हम इनके चिरऋणी है. प्रतिलेखकों के शुद्ध व प्रामाणिक लेखन से ही आज हम इतिहास का वास्तविक दर्शन कर पाते हैं. हस्तप्रतों से संलग्न विद्वानों के भाव को तथा लेखन शैली एवं इनके उद्गारों को यदि संकलन किया जाय तो एक महाग्रंथ बन जायेगा. अब हस्तप्रतों से संबद्ध विविध विद्वानप्रकारों को अधोलिखित रूप से बताने का प्रयास करते हैं विद्वान प्रकार प्रतिलेखक - हस्तप्रत लिखने का जो कार्य करे उसे लिपिकार, प्रतिलेखक या लहिया कहते हैं. हस्तप्रतों में यह सूचना प्रतिलेखन पुष्पिका के अंदर मिलती है. प्रतिलेखक संपूर्ण प्रत लिखने के बाद अंत में प्रतलेखन से जुडी अनेक बातों का विवरण देता है. प्रतिलेखक अपनी योग्यता तथा अभिरुचि के अनुसार कभी तो सीधी-सादी भाषा में तो कभी गूढार्थ / पर्यायगर्भित व सांकेतिक रूप में प्रतिलेखन पुष्पिका में अपना संपूर्ण विवरण देता है. यह पुष्पिका प्रायः गद्यात्मक होती है, क्वचित् पद्यमय भी देखी जाती है. इसके अन्तर्गत लेखन संवत्, मास, पक्ष, तिथि, दिन, कोई विशेष प्रसंग हो तो उसका उल्लेख, लेखन स्थल, लिखवानेवाला, लेखनप्रेरक, राज्यकाल, गच्छाधिपतिराज्य, पठनार्थे आदि विवरणों के साथ उल्लेख करता है, जिस धर्मस्थान में लिखा जा रहा हो उस स्थान का भी उल्लेख करते हैं, उक्त सूचनाओं में से सभी सूचनाएँ सभी प्रतों में नहीं मिलती है. ये सूचनाएँ अनियमित रूप से मिलती है. किसी प्रत में आंशिक, किसी में सीमित, किसी में मात्र लेखन संवत्, किसी में लेखन स्थल तो किसी में सविस्तृत सूचनाएँ भी मिलती है. यदि स्तुति, स्तोत्र, स्तवन, सज्झाय, प्रकरणादि की संग्रहात्मक प्रत हो अथवा आकार में बड़ी प्रत हो, तो थोड़े-थोड़े अन्तराल पर कृति पूर्ण होने पर अलग-अलग संवत्, स्थल, प्रतिलेखक व पठनार्थे आदि सूचनाएँ भी मिलती हैं. कभी गुरुपरंपरापूर्वक तो कभी मात्र अपने नाम का ही उल्लेख मिलता है. उपर्युक्त पाठांशों के कुछेक उदाहरण देखने योग्य है, यथा गूढार्थ / पर्याय/संकेतगर्भित प्रतिलेखन पुष्पिका-प्रतसंख्या- ७३२१८ में उल्लिखित-संव्वत् १९०३ वर्षे भाद्रपदस्याकृष्णसप्तम्यान्तिथा७वादित्यजे सकलपंडित कविसार्वभौमः पं. ।श्री १०८ श्रीफतेन्द्रसागरगणेश्शिष्य मुनिना चिमनसिन्धुनालेखि For Private and Personal Use Only

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