Book Title: Shrutsagar 2014 10 Volume 01 05
Author(s): Kanubhai L Shah
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25 श्रुतसागर अक्तूबर-२०१४ प्रत लिखना. गुरुशिष्यपरंपरावर्ती प्रतिलेखक-साधु भगवंतों के द्वारा अपने शिष्य-प्रशिष्यों, मुमुक्षु, धर्मध्यानपरायण व श्रुतनिष्ठ श्रावकों के अध्ययनार्थ प्रत लिखना. स्वपरहिताय प्रतिलेखक-ज्ञानावरणी कर्मक्षय के लिये तथा अन्य किसी भी भावी योग्य पात्रों के पठनार्थ स्वपरहिताय ग्रंथ लिखा करते है. व्यक्तिगत उपयोगलक्षी प्रतिलेखक-धार्मिक स्वाध्याय आदि नित्यकर्म उपयोगी, औपदेशिक तथा ऐसे संकलन जैसे कि स्तुति, स्तवन, सज्झाय, रास आदि संग्रह जिससे निजानंद व अध्यात्म सुख पाते हैं. ऐसे प्रतिलेखक तो खुद के लिये लिखते है किन्तु कालान्तर में जाकर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय सिद्ध होते हैं. प्राचीन काल में विविध ज्ञानभंडारों में हस्तप्रतों की अनेक प्रतियाँ रखने हेतु श्रीसंघ द्वारा अपेक्षानुसार एकाधिक लहियाओं को बुलाकर हस्तप्रत लिखने, सुधारने का काम कराया जाता था. इस कार्य में स्थानीय व बाहर से भी प्रतिलेखक बुलाये जाते थे. कोई नये ग्रंथ की रचना हुई तो विविध भंडारों में हस्तप्रत रखने हेतु अधिक प्रतों की आवश्यकता पड़ती थी. उसी तरह से लेखन का काम अनवरत किया जाता था. क्वचित् विशिष्टतम कक्षा के ग्रंथ को हाथी की अंबाडी पर रखकर शोभायात्रा के साथ बड़े धूमधाम से उत्सवपूर्वक लोकाभिमुख किया जाता था. सिद्धहेमशब्दानुशान की रचना के बाद शोभायात्रा का प्रसंग तो भली भाँति सब जानते ही हैं. उदाहरण के लिये प्रत संख्या-६७७ में श्रीदानसूरि के सानिध्य में अहमदाबाद निवासी सहजपाल, उसकी पत्नी, पुत्र विमलदास ने शत्रुजय का संघ निकाला, तालध्वज एवं उज्जयंत तीर्थगिरि का जीर्णोद्धार किया एवं ज्ञानावरणीय कर्मक्षयार्थ इस प्रकार की शतश: प्रति स्वयं लिखवाई. इस प्रकार लिखना ही जब एकमात्र साधन था तो स्वयं लिखकर या लिखवाकर ग्रंथ संग्रह किया जाता था. सर्वाधिक लिखने का काम साधु-साध्वीजी भगवंत, यतिमहात्माओं द्वारा देखा गया है. इसका कारण है कि साधु जीवन स्वावलंबी होता हैं. सतत अध्ययन, अध्यापन, लेखन, संशोधन आदि कार्यों से जुड़े होने से यह कार्य इनके जीवन का एक हिस्सा बन जाता है. साथ ही इनके द्वारा लिखी गयी प्रत कोई गुरुनिश्रा आदि होने से शुद्धप्राय होती है. इसके बाद व्यवसायजीवी प्रतिलेखकों द्वारा लिखी गयी प्रतें मिलती हैं. गृहस्थ श्रावकों द्वारा लिखा जाना तो कम परन्तु For Private and Personal Use Only

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