Book Title: Shatkhandagama Pustak 10 Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay AmravatiPage 10
________________ विषय-परिचय अजघन्य, सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव, ओज, युग्म, ओम, विशिष्ट और नोम-नोविशिष्ट; इन १३ पदोंका यथासम्भव विचार किया गया है। इसके अतिरिक्त सामान्य चूंकि विशेषका अविनाभाषी है, अत एव उक्त १३ पदोंमेंसे एक एक पदको मुख्य करके प्रत्येक पदके विषयमें भी शेष १२ पदों की सम्भावनाका विचार किया गया है। इस प्रकार ज्ञानावरणादि प्रत्येक कर्मके सम्बन्ध १६९ { १३ + ( १३ × १२ ) = १६९ } प्रश्न करके उक्त पदों के विचारका दिग्दर्शन कराया गया है। उदाहरण के रूपमें ज्ञानावरणको ही ले लें। उसके सम्बन्धमें इस प्रकार विचार किया गया है ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यसे क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादि है, क्या अनादि है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोम-नोविशिष्ट है; इस प्रकार १३ प्रश्न करके उनके ऊपर क्रमशः विचार करते हुए कहा गया है कि ( १ ) उक्त ज्ञानावरणीयवेदना द्रव्यसे कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, गुणितकर्माशिक सप्तम पृथिवीस्थ नारकी जीवके उस भवके अन्तिम समय में ज्ञानावरणीयको उत्कृष्ट वेदना पाई जाती है । ( २ ) कथंचित् वह अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, गुणितकर्मशिकको छोड़कर शेष सभी जीवोंके ज्ञानावरणीयका द्रव्य अनुत्कृष्ट पाया जाता है । ( ३ ) कथंचित् वह जघन्य है, क्योंकि, क्षपितकर्माशिक क्षीणकषाय गुणस्थानवर्ती जीवके इस गुणस्थानके अन्तिम समय में ज्ञानावरणीयका द्रव्य जघन्य पाया जाता है । ( ४ ) कथंचित् वह अजघन्य हैं, क्योंकि, उक्त क्षपितकर्माशिकको छोड़कर अन्य सब प्राणियों में ज्ञानावरणीयका द्रव्य अजघन्य देखा जाता है । ( ९ ) कथंचित् वह सादि है, क्योंकि, उत्कृष्ट आदि पदोंका परिवर्तन होता रहता है, वे शाश्वतिक नहीं हैं । (६) कथंचित् वह अनादि है, क्योंकि, जीव व कर्मका बन्धसामान्य अनादि है, उसके सादित्वकी सम्भावना नहीं है । ( ७ ) कथंचित् वह ध्रुव है, क्योंकि, अभव्यों तथा अभव्य समान भव्य जीवों में भी सामान्य स्वरूपसे ज्ञानावरणका विनाश सम्भव नहीं है । ( ८ ) कथंचित् वह अध्रुव है, क्योंकि, केवलज्ञानी जीवों में उसका विनाश देखा जाता है । इसके अतिरिक्त उक्त उत्कृष्ट आदि पदका शाश्वतिक अवस्थान सम्भव न होनेसे उनमें परिवर्तन भी होता ही रहता है । ( ९ ) कथंचित् वह युग्म है, क्योंकि, प्रदेशोंके रूपमें ज्ञानावरणीयका द्रव्य सम संख्यात्मक पाया जाता है । (१०) कथंचित् वह ओज है, क्योंकि, उसका द्रव्य कदाचित् विषम संख्या के रूपमें भी पाया जाता (₹) १ ओजका अर्थ विषम संख्या है। इसके २ भेद हैं- कलिओज और तेजोज । जिस राशि में ४ का भाग देनेपर ३ अंक शेष रहते हैं वह तेजोज ( जैसे १५ संख्या ), तथा जिसमें ४ का भाग देनेपर १ अंक शे रहता है वह कलिओज ( जैसे १३ संख्या ) कही जाती है । २ युग्मका अर्थ सम संख्या है। इसके २ भेद हैंकृतयुग्म और बादरयुग्म ( बादर यह वापर शब्दका विगड़ा हुआ रूप प्रतीत होता है । भवगतीसूत्र आदि श्वेताम्बर ग्रंथों में दावर - द्वापर शब्द ही पाया जाता है ) । जिस राशिमें ४ का भाग देनेपर कुछ शेष नहीं रहता वह कृतयुग्म राशि कही जाती है ( जैसे १६ संख्या ) । जिस राशिमें ४ का भाग देनेपर २ अंक शेष रहते हैं वह बादरयुग्म कही जाती है (जैसे १४ संख्या ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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