Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ गौरश्यामतनू तुङ्गौ समेतौ तौ विरेजतुः / भुवं कम्पयितुं प्राप्तौ हिमाञ्जनगिरी इव // 7307 // मल्लो मल्लमिव म्लानिमापन्नं पापयोगतः / / आक्रम्य चरणेनोच्चैविवेकस्तमपातयत् // 7 / 308 // सदा कृतजगद्रोह ! दुःखसंदोहदायक!। . विषमोऽहं विनष्टोऽसि रे रे मोह ! मया धृतः . // 7309 // यः कोऽपि त्रायते कम्पदेह ! संप्रति तं स्मर / न याज्ञिक इव छागं त्वां जीवन्तमहं सहे // 7 / 310 // सुतो वा सोदरो वास्तु सगोत्रोऽस्तु सखास्तु वा। दुष्का वध्य एवेति रीतिः सर्वमहीभुजाम् // 7311 // जननीयं जनकोऽयमेताः सन्निहिताः सुताः / सर्वाः पश्यन्ति फुल्लाक्ष्यस्त्वां मृत्योः कोऽपि नावति // 7 / 312 // अहं तव वधे साक्षिमात्रमेवास्मि केवलम् / विपक्त्रिमाणि पापानि मृत्युदायीनि ते पुनः .. // 7313 // इत्युदित्वा निरुन्धानस्तज्जा मुष्ट्यादिताडनाः / / विवेकः पशुनेव द्वं ब्रह्मास्त्रेण जघान तम् // 7 // 314 // ' भृत्या मोहस्य ये ज्ञानदर्शनावरणादयः / ते तदुःखात्तदा क्षीणास्तं मोचयितुमक्षमाः // 7 / 315 // माया निध्याय पुत्रस्येष्टस्य तां तादृशीं दशाम् / व्रततिर्लग्नवल्मीवोर्ध्वशोषमशृषत्क्षणात् // 7 / 316 // जडता मृतमालोक्य प्राणेभ्योऽपि प्रियं प्रियम् / तरौ छिने तदाधारा वल्लीव न्यषतद्भुवि // 7317 // सर्वा अपि सुता मोहं पश्यन्त्यः सहसा मृतम् / / तात तातेति जल्पन्त्यः शीर्णा दीपदशा इव // 7318 // / 26

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330