Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 7371 // // 7372 // // 7 / 373 // // 71374 // // 7 / 375 // // 7 / 376 // येऽवैश्यन्त त्वया क्षीणाः कोशाः प्राग्विवशात्मना / तेऽद्य पूर्णा निरीक्ष्यन्ते वीर्याह्लादादयः पुनः पुरा त्वं वाहितो म्लेच्छै र दारूदकादिकम् / सांप्रतं सेव्यसे सर्वैरमरैः किंकरिव आवयोः कः पृथग्भावः शश्वदेकस्वभावयोः / केऽपि स्थूलदशो भेदमेव नेच्छन्ति नौ जनाः / मायावशंवदत्वेन तव कालुष्यशङ्किनी। . अपि सत्यसतीवाऽहं सन्निधावेव तस्थुषी वीतमाय ममागस्त्वं तत्क्षमस्व क्षमानिधे ! / अतः परं भजिष्यामि त्वामेकाग्रमनाः सना इदं हेममयं रत्नखचितं रचितं सुरैः। . कमलं समलंकृत्य नाथ ! न्यायं प्रकाशय इति पत्न्या गिरा त्यक्तबन्धनः प्राप्तपाटवः / भूपतिः स्वं स्वरूपस्थं पश्यन्नांनन्दभूरभूत् अविनाभावि संपर्के जाते चेतनया समम् / . देवास्तस्य शिरस्युच्चैः पुष्पवर्ष वितेनिरे कृत्वा जयजयारावं चेलोत्क्षेपं विधाय च / अवीवदन्नमी व्योम्नि दुन्दुभीस्तौयिका इव वज्रकन्दे मणीनाले सौवर्णछदशालिनि / विमले कमले दिव्ये हंसवन्निषसाद सः सेवाहेवाकिनो देवा विष्वक् तं परिवव्रिरे / तदास्येन्दुप्रभालोभचकोरायितलोचनाः उपासांचक्रिरे तं च मानवा अपि धीधनाः। - एतस्माकिमु गङ्गापि पैतृकीति प्रजल्पिनः // 7 / 377 // // 7 / 378 // // 7 / 379 // // 74380 // // 7381 // // 7 / 382 // 302
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