Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 7 / 359 // // 7 // 360 // // 7 / 361 // कलन // 7362 // // 7 / 363 // // 7 / 364 // पाथेयवद्भवद्दत्तममुञ्चन्ननुशासनम् / अबाधः साधयाम्यग्निप्रवेशं यदि मन्यसे भविता नूनमस्तेऽस्मिन् लाभो मे न पुनः स्थिते / इति निश्चित्य तस्योक्तं विवेको बह्वमन्यत द्वादशेऽथ गुणस्थाने भावतीर्थमये शुचौ / कुण्डवत्क्षायिकं भावं विवेकः पर्यमीमृजत् . ततोऽन्तरायप्रचलानिद्राप्रभृतिकर्मभिः / सुहूतैर्दारुभिः शुक्लध्यानानलमजिज्वलत् विवेके सपरीवारे जाते साक्षिणि स क्षणात् / मनोमन्त्री प्रविश्यात्र निर्वीर्यो भस्मतां ययौ अस्मिन्नवसरे लब्धावकाशा सा महासती। . चेतना मुख्यरूपेण पति हंसमुपासरत् ऊचे च विनयप्रा जिह्वाग्रलुठितामृता। अदृष्टचरमेतन्मे रूपं नाथ ! निभालय न मनोमोहयोः पार्श्वस्थयो रूपमिदं मया / आविष्क्रियेत सद्रत्नमिव स्तेनकिरातयोः स्वं बद्धं विद्धि मा धीमंस्तव बन्धा विलिल्यिरे / यैर्बद्धोऽसि दुरात्मानस्तेऽपि सर्वे क्षयं गताः . निरभ्र इव मार्तण्डो राहुमुक्त इवोडुपः / / उत्सृष्टावरणो दीप इव हेमेव निर्मलम् माणिक्यमिव निष्पकं नि म इव पावकः / अपास्तरिपुसंसर्गस्त्वं भृशं दीप्यसेऽधुना सूक्ष्मं मनोऽबला माया दुर्बलं त्वां बबन्धतुः / तवाद्य बलमुल्लासमासदद्विश्वमोचकम् // 7 / 365 // // 7366 // // 7367 // // 71368 // // 7 / 369 // // 7 / 370 // 301
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