Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 7337 // // 7338 // // 7339 // // 7 / 340 // एष निःशेषविद्वेषिमुख्यः क्लेशकरोंगिनाम् / एष त्रिभुवनस्यापि पापाभ्यासकलागुरुः जन्तुं हन्ति विमन्तुमन्तक इवालीकं वचो जल्पति, स्तैन्ये राज्यति संस्तुते परवधूः पैशून्यमालम्बते / / मित्रे द्रुह्यति नाथमुज्झति पलं चाश्नाति मद्यं पिबत्यन्यायं कुरुते खलेषु रमते मोहस्य वश्यो जनः सर्वो जन्तुरनन्तशोऽपि नरके नानाविधावेदनाः, क्षुत्तृड्वीवधबन्धमारविपदां पूरं पशुत्वे पुनः / वैरव्याधिवियोगबन्धनधनभ्रंसान् भवे मानवे, देवत्वेऽभिभवाभियोगमरणान्याप्नोति मोहोदये भवतादीदृशास्यास्य मृत्युः प्रत्युत ते मुदे / . कस्य कालज्वरो देहादूरीभूतो न रोचते हन्यमाने मयामुष्मिन् मोदन्ते स्मामरा नराः। - न संतुष्यति को धीमांश्छिद्यमाने विषद्रुमे / धिगयं दुर्नयः पुत्रप्रेम्णा संवर्धितस्त्वंया / वयं चौरा इवापास्ता दूरे गौरगुणा अपि निवृत्तिस्तव पत्नीयं विवेकोऽहं सुतस्तव / इमे शमाद्यास्ते पौत्रा अथैषु स्नेहमुद्वह तादवस्थ्ये कुटुम्बस्य तात ! का न्यूनता तब / गताऽहो त्रापुषी भूषा हैमी सा तु समागता चापलं सर्वथा मुञ्च देवमञ्च निरञ्जनम् / तात ! प्रीतिविषादाभ्यां बाधां मा धा मनागपि तेनेति बोधितोऽपि स्वामायति मन्त्र्यचिन्तयत् / मतिरुल्लसति प्रायो मन्त्रिणां दीर्घदृश्वरी 299 // 7341 // // 7 // 342 // // 7 / 343 // // 7 / 344 // // 7 / 345 // // 7 / 346 //
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