Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 309
________________ // 7347 / / // 7 // 7 / 349 // // 7 / 350 // // 7351 // // 7 / 352 // विवेको वक्ति तत्सत्यमायतौ सुन्दरं परम् / मोहस्नेहः कथं संक्रामत्यस्मिन् सहसा नवे यदसौ शैशवे मात्रा समं निर्वासितो मया / तदस्य खाट्करोत्येव हृदये गूढशल्यवत् / अस्य माताऽनिशं भोगदुविधा विधये मया / / सापि मन्ये ममागांसि सदामुं स्मारयिष्यति ये द्वे अस्य प्रिये ते कां मयि भक्तिं विधास्यतः / वात्यां तृण्या इव श्वश्रूमेवं वध्वोऽनुयन्ति यत् पुत्राः पौत्रा विरागाद्या येऽस्य सन्ति सहस्रशः / तेऽपि मां पितृवैरीति मंस्यन्ते वेश्मसर्पवत् पश्याम्यस्य परीवारे तं न कञ्चन मानुषम् / यः कटाक्षितकुन्तानां न मां लक्षीकरिष्यति विराध्यामुं पुनर्वासविधिर्यदमुना समम् / सिंहमाक्रुश्य तत्तस्य गुहायां स्थितिकल्पना किं चात्माभ्यधिकस्यास्य सहसा दुर्दशामिमाम् / साक्षाद्वीक्ष्य मनोऽद्यापि हहा जीवितुमिच्छति गताः पुत्रा गताः पौत्रा गताः पुत्र्यो गताः स्नुषाः / समर्थे प्रस्थिते सार्थे स्थास्याम्येष कियच्चिरम् इत्यन्तगूढमालोच्य स विवेकमभाषत / शृणु वत्स ! तवास्त्येवं वात्सल्यं मय्यकृत्रिमम् परं परिचितो मोहो दुरावारोऽपि मे चिरम् / पुरो विपद्यमानेऽस्मिन् जात ! युक्तं न जीवितुम् जीवति त्वयि जीवामि मृतं तु त्वामनुम्रिये / . . इत्यस्मै वाग्मयाऽदायि पुरा सत्यापयामि ताम् // 7 / 353 // // 7 // 354 / / // 7355 / / // 7 / 356 // // 7357 // // 7 / 358 // 300

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