Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 09
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 7 / 394 // // 7395 // // 7396 // // 7397 // // 7 / 398 // // 7 / 399 // या दुःस्थे मयि नामुचद्धितधियं मुक्तच्छलां वत्सलां, तां सूर्योपलनिर्मलां प्रणयिनीमेकां स्तुमश्चेतनाम् ग्रामाध्यक्षस्ततो वक्ष्यत्याप्तमुख्य ! निशम्यताम् / यदिदं स्वं त्वयाऽवादि वृत्तं तत्सर्वसन्निभम् सर्वेऽप्यनुभवन्त्येतद्वृत्तं न त्वभिजानते / व्यामोहमदिरापानलुप्तसंवित्तयो जनाः यद्वालं चिन्तया तेषां येषां त्वमसि दूरतः / तमसा किमु बाध्येऽहं त्वयि सन्निहिते रखौ तन्मां विविधजन्मान्धकूपतः स्वमिवोद्धर। . आत्मवत्सर्वभूतानि पश्येदिति सतां स्थितिः ततः संततसंवेगशालिनं निश्चलाग्रहम् / / स मुनिग्रामणीामाधिपं तं दीक्षयिष्यति' गुरुणा सह सोऽमायी स्वाध्यायध्वनितं विना / मौनी मौनीश्वरीं मुद्रामादृत्य विहरिष्यति बद्धं कर्म तपोनिघ्नन् संयमेनाभजन्नवम् / / काले स केवली कर्ममुक्तो मुक्ति गमिष्यति चेतनाऽवसरं ज्ञात्वा गते काले कियत्यपि / अनापदं पदं नेतुं नाथं विज्ञापयिष्यति अनन्तदर्शनज्ञान ! सर्वलोकसुखाकर ! / स्थानं यदधिशेषे त्वं तत्स्वरूपं विचिन्तय नवद्वारगलच्चेलरसजम्बालपिच्छिलम् / विततान्त्रशिरास्नायुस्मारितान्त्यजमन्दिरम् उच्चावचकचस्तोमरोमबीभत्सदर्शनम् / / द्रष्टुमप्यक्षमं मांसवशामेदोऽस्थिलोहितैः 304 . // 71400 // // 74401 // // 7402 // // 71403 // // 7 / 404 // // 74405 //
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