Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 5
________________ रखते डॉ. भारिल्लजी ने इस कृति का प्रणयन किया है; इसके लिए हम डॉ. भारिल्लजी के आभारी हैं हुए यद्यपि यह अब तक ४५ हजार ७०० की संख्या में लोगों के हाथों में पहुँच चुकी है, परन्तु अब अनुपलब्ध हैं; अतः यह पाँचवाँ संस्करण प्रकाशित करना अनिवार्य हो गया है। तीर्थराज सम्मेदशिखर सम्पूर्ण जैन समाज के सम्मिलन और एकता का स्थल है; क्योंकि अनेक सम्प्रदायों में विभक्त जैन समाज का यहाँ सहज ही सम्मिलन होता है और उनके परिणाम भी यात्रा के समय निर्मल होते हैं; इस कारण उनमें परस्पर सौहार्द्र बढने का सहज सुअवसर प्राप्त होता है । परन्तु जैन समाज का दुर्भाग्य ही समझिये कि आज यह स्थल मनोमालिन्य का कारण बन रहा है। हम सबका प्रयास होना चाहिए कि हम अपने कार्यों से ऐसा वातावरण बनायें कि वातावरण एकता के अनुकूल बने । समाज के नेताओं का कर्तव्य है कि वे परस्पर एक-दूसरे की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए ऐसा रास्ता निकालें कि जिससे दोनों संप्रदाय प्रसन्नता का अनुभव करें और सहजभाव से स्वीकार कर लें। इसे जीत-हार का मुद्दा न बनाकर समन्वय और सहयोग के वातावरण में ऐसा हल निकालें कि जिसमें दोनों ही सम्प्रदाय जीत का अनुभव करें। यह सब काम तब तक सम्भव नहीं है, जब तक हमारे मन निर्मल नहीं होते । हमारा विश्वास है कि डॉ. भारिल्ल की यह कृति हमारे मनों को निर्मल करने में अवश्य सहायक होगी; क्योंकि इसमें निष्पक्ष भाव से सम्मेदशिखर तीर्थराज की महिमा बताई गई है। • इस कृति का स्वाध्याय करने से अनेक भव्यात्माओं को शाश्वत तीर्थराज सम्मेदशिखर की महिमा अवश्य वृद्धिंगत होगी - हमारा ऐसा पक्का विश्वास है । सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा एवं इस कृति के स्वाध्याय से सभी आत्मार्थी भाई कल्याण के मार्ग पर लगें और हिल-मिल कर रहें - इस मंगल भावना के साथ विराम लेता हूँ । २६, जनवरी २००९ ई.. ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशनमंत्री, पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर

Loading...

Page Navigation
1 ... 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33