Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 17
________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर सठ शलाका के महापुरुष निम्नानुसार हैं - २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र। वर्तमान में अवसर्पिणी काल का पंचमकाल चल रहा है। इसमें न तो कुलकर ही होते हैं और न त्रेसठ शलाका महापुरुषों की उत्पत्ति ही होती है। किसी को मुक्ति (मोक्ष) की भी प्राप्ति नहीं होती है। चतुर्थकाल में जो त्रेसठ शलाका के महापुरुष हुए हैं, विशेषकर उनके चरित्रों का वर्णन ही जैन पुराणों का कथ्य है। इसप्रकार अनन्त कल्पकाल बीत चुके हैं और भविष्य में भी अनन्त होंगे। तदनुसार तीर्थंकरों की अनन्त चौबीसियाँ इस भरतक्षेत्र में हो चुकी हैं और भविष्य में अनन्त और होंगी। ऐसी ही व्यवस्था ऐरावत क्षेत्र की है। विदेह क्षेत्र की व्यवस्था इससे कुछ भिन्न प्रकार की है। वहाँ सदा चतुर्थकाल जैसी स्थिति रहती है।" शाश्वत तीर्थराज सम्मेदशिखर की महिमा के संदर्भ में एक बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि जो भी तीर्थंकर या मुनिराज जहाँ से मुक्त होते हैं, सिद्धशिला में ठीक उसके ऊपर ही अनन्तकाल तक विराजमान रहते हैं; क्योंकि मुक्त जीवों की गति (गमन) अविग्रहा (बिना मोड़वाली) ही होती है। जब हम तीर्थराज सम्मेदशिखर की वंदना कर रहे होते हैं तो हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि जहाँ हम खड़े हैं; ठीक उसके ऊपर ही अनन्त सिद्ध विराजमान हैं; मानों हमारे मस्तक पर ही अनन्त सिद्ध विराजमान हैं। इस विचार से हमें अवश्य रोमांच होगा, हम आनन्दविभोर हो उठेगे, हमारे परिणामों में निर्मलता आवेगी, हमारी यात्रा सफल हो जावेगी, सार्थक हो जावेगी। यहाँ एक प्रश्न संभव है कि शास्त्रों में तो यह आता है कि ४५ लाख १. तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ, पृष्ठ-२३-२४

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