Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 18
________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर योजन की सिद्धशिला में एक इंच भी स्थान ऐसा नहीं है, जहाँ सिद्ध भगवान विराजमान न हों। यह तो निश्चित ही है जो जहाँ से सिद्ध होता है, वह उसी की सीध में सिद्धशिला में विराजमान होता है। ऐसी स्थिति में तो सम्पूर्ण ढाईद्वीप ही सिद्धक्षेत्र हो गया। ऐसा कोई स्थान ही नहीं रहा कि जहाँ से कोई न कोई जीव सिद्ध नहीं हुआ हो। अतः सम्मेदशिखर की भूमि की अन्य भूमि से क्या विशेषता रही ? भाई, बात तो यही है कि ढाईद्वीप में सभी स्थान सिद्धक्षेत्र हैं; पर शिखर सम्मेद की भूमि के ऊपर के स्थान में सिद्धों की संख्या बहुत अधिक है; क्योंकि वहाँ एक-एक सिद्ध की अवगाहना में अनेकानेक सिद्ध समाहित हैं। दूसरी बात यह है कि सम्मेदशिखर सामान्य मुनिराजों की ही नहीं, अनन्त तीर्थंकरों की भी निर्वाणभूमि है। अत: वह तीर्थराज है और उसके विशेष महत्त्व से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यह शाश्वत तीर्थराज सम्मेदशिखर भारतवर्ष के झारखण्ड नामक प्रदेश में गिरीडीह नामक नगर के निकट स्थित है। यह पर्वतराज समुद्र की सतह से ४२७९ फीट की ऊँचाई पर स्थित है; जो लगभग १२८४ मीटर होता है । पर्वतराज का यह भाग आयताकार ४० वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। __ पर्वत के शिखर पर २४ तीर्थंकरों के चरणचिन्ह हैं। इन चरणचिन्हों की वंदना करने के लिए यात्रियों को १० किलोमीटर चलकर पर्वत पर चढना होता है; तब १७वें तीर्थंकर कुन्थुनाथ भगवान की पहली टोंक पर पहुँचते हैं। उसके बाद सभी टोंकों की वन्दना करने के लिए १० किलोमीटर चलना पड़ता है, चढना-उतरना पड़ता है। अन्त में २३वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की टोंक आती है। इसके बाद नीचे आने के लिए १० किलोमीटर उतरना होता है। इसप्रकार कुल मिलाकर ३० किलोमीटर की यात्रा हो जाती है।

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