Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 29
________________ २४ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर अरे भाई ! शान्तिनाथ तो तीर्थंकर के साथ-साथ चक्रवर्ती भी थे; उनके क्या कमी थी? वैसे सभी तीर्थंकर राजकुमार ही थे, राजा ही थे; किसी को कोई कमी नहीं थी, पर ध्यान की सिद्धि के लिए वे जंगल में गये, घर-परिवार छोड़कर गये, पर्वत की चोटियों पर गये; जिसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं ये हमारे सम्मेदशिखर जैसे तीर्थक्षेत्र । इस पर कुछ लोग कहते हैं कि वातानुकूलित कमरे में गर्मी न लगने से ध्यान में मन लग जाता है, मक्खी-मच्छर नहीं होने से कोई बाधा नहीं होती है; पर भाई साहब गर्मी-सर्दी की परवाह करनेवाले ध्यान नहीं करते। हमारे मुनिराजों का ध्यान तो सिंह जैसे क्रूर प्राणी भी भंग न कर सके और आप मक्खी-मच्छरों के कारण ध्यान नहीं कर पाते हैं। ___ ध्यान के लिए निरापद स्थान वातानुकूलित घर नहीं, प्रकृति की गोद में बसे घने जंगल हैं, पर्वत श्रेणियाँ हैं। वातानुकूलित हॉल में बैठकर आजतक किसी को भी केवलज्ञान हुआ हो तो बताइये, पर ऐसे अनन्त सिद्ध हो गये हैं, जिन्हें सम्मेदशिखर जैसे पर्वतों की चोटियों पर केवलज्ञान की प्राप्ति हुई है। इन वातानुकूलित कमरों में बैठनेवालों को तो इसका भी पता नहीं है कि ध्येय क्या है, ध्यान किसका करना है ? बिना ध्येय के स्पष्ट हुए किसी को ध्यान नहीं होता। न तो इन्हें ध्येय का पता है और न ही उसे समझने का प्रयास ही चालू है। बस, बिना कुछ सोचे-समझे ध्यान चल रहा है। ध्यान भी आज एक फैशन-सा बनता जा रहा है, विलासिता की वस्तु बनता जा रहा है। आज का ध्यान नवधनाड्यों की लक्जरी वस्तु बन कर रह गया है। योग, प्राणायाम और ध्यान के नाम पर ये लोग रिलेक्स करते हैं, तनाव कम करते हैं। इन्होंने ध्यान को तनाव कम करने का साधन बना लिया है, रक्त-चाप कम करने का साधन मान लिया है।

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