Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 27
________________ २२ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर साधुओं के लिए कितना खतरनाक है ? इसी की विशुद्धि के लिए यह नियम रखा गया है कि आहारचर्या के बाद साधु आचार्यश्री के पास जाकर सब-कुछ निवेदन करें और उनके आदेशानुसार प्रायश्चित्त करें । इसी बात को ध्यान में रखकर वीतरागी साधुओं को गृहस्थों के समागम से बचने का पूरा-पूरा यत्न करना चाहिए। गृहस्थों का भी कर्तव्य है कि वे भी मुनिराजों को जगत के प्रपंचों में न उलझावें । यदि उन्हें उनका सत्समागम मिल जाता है तो उनसे वीतरागी चर्चा ही करना चाहिए । मुनिराज उद्दिष्ट आहार के त्यागी होते हैं। उनकी वृत्ति को मधुकारी वृत्ति कहा गया है । जिसप्रकार भौंरा या मधुमक्खी जिन फूलों से मधु ग्रहण करती है, रस ग्रहण करती है; वह उसे रंचमात्र भी क्षति न हो जावे इस बात का ध्यान रखती हैं। वे पुष्प का रस लेते समय इतना ध्यान रखते हैं कि उस पर अपना वजन भी नहीं डालते, भिनभिनाते रहते हैं, उड़ते रहते हैं और अत्यन्त बारीक अपने डंक से इसप्रकार रस चूसते हैं कि पुष्प का आकार भी नहीं बिगड़ता, वह एकदम जैसा का तैसा बना रहता है। उसीप्रकार मुनिराज भी, जिसके यहाँ आहार लेते हैं, उसे किसी भी प्रकार की पीड़ा पहुँचे, ऐसा नहीं होने देते। अतः उनके उद्देश्य से बनाये गये आहार को ग्रहण नहीं करते। गृहस्थ ने जो आहार स्वयं के लिए बनाया, उसमें से ही वह मुनिराज के लिए देवें, वही ग्रहण करते हैं । मुनिराजों के उद्देश्य से बनाये गये आहार में जो आरंभी हिंसा होती है, उसका भागी मुनिराज को बनना होगा; इसकारण मुनिराज नहीं चाहते कि कोई उनके उद्देश्य ये आहार बनावें । यही कारण है कि वे उद्दिष्ट आहार के त्यागी होते हैं । " १. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, पृष्ठ ५५ से ५८

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