Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर रख भी दिया तो कितना रखेगा ? बस एक ग्रास ही न ? पर थाली में तो चाहे कितना रखा जा सकता। ___ भोजन में जो स्वाधीनता हाथ में खाने में है, वह स्वाधीनता थाली में खाने में नहीं रहती। एक बात यह भी है कि उसमें भक्तगण अपने वैभव को प्रदर्शित किए बिना नहीं रहते। यदि महाराज थाली में खाने लगे तो कोई चांदी की थाली में खिलायेगा, कोई सोने की थाली में। दिगम्बर वीतरागी भगवान की मूर्तियों को भी हम सोने-चांदी, हीरेजवाहरात से सजाने लगते हैं। यदि दिगम्बर लोग उनके तन पर कोई गहना-कपड़ा नहीं सजा सकते तो उनके परिकर को सजावेंगे। छत्रचमरों से उन्हें जगमगा देंगे। जिन्हें तुच्छ जानकर वे त्याग कर आये हैं, उन्हीं को उनके चारों ओर सजावेंगे। रागियों की प्रवृत्तियाँ रागमय ही होती हैं, वैरागी और वीतरागी मुनिराजों को वे वृत्तियाँ और प्रवृत्तियाँ कैसे सुहा सकती हैं ? यही रहस्य है, उनके करपात्री होने का। यह तो आप जानते ही हैं कि मुनिराज जब आहार लेकर वापिस लौटते हैं तो उन्हें आचार्यश्री के समक्ष उपस्थित होकर चर्या के काल में जो भी घटित हुआ हो, वह सब सुनाना पड़ता है। यदि चर्या के काल में मन-वचन-काय की क्रिया में कुछ दोष लग गया हो, तो वह सब भी बताकर प्रायश्चित्त लेना होता है। भोजन की चर्या के बाद ही यह सब क्यों ? इसलिए कि आहार के काल में गृहस्थों के समागम की अनिवार्यता है और उनके समागम में दोष होने की संभावना भी अधिक रहती है। इसी बात से अनुमान लगाया जा सकता है कि गृहस्थों का समागम

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