Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर जितने भी तीर्थ पृथ्वी पर वर्त रहे हैं, वे सब कर्मक्षय के कारण होने से वन्दनीय हैं।" ___ जहाँ निज भगवान आत्मा की आराधना की जाती है, जहाँ रत्नत्रयधर्म की साधना की जाती है, जहाँ से तीर्थंकरादि ने निर्वाण प्राप्त किया है, जहाँ तीर्थंकरों के पंचकल्याणक हुए हैं, जहाँ आगम और परमागम लिखे गये हैं, जहाँ वीतरागी सन्तों का विहार होता है, जहाँ वे सन्त आत्मसाधना करते हैं; उन सभी परम-पवित्र स्थानों को तीर्थ कहा जाता है। आज तो सम्पूर्ण जगत मूलतः उन सम्मेदशिखर आदि को ही तीर्थ मानता है, तीर्थों के नाम पर उनकी ही यात्रा करता है, आत्माराधना करता है; यह जानता तक नहीं है कि भगवान आत्मा भी तीर्थ है, रत्नत्रय रूप धर्म भी तीर्थ है, जिनदेव भी तीर्थ हैं, जिनवाणी भी तीर्थ है और जिनमंदिर भी तीर्थ हैं। स्थान की मुख्यता होने से इन्हें तीर्थक्षेत्र भी कहते हैं। विभिन्न कारणों से स्थापित होने के कारण इन्हें अनेक वर्गों में विभाजित किया जाता है। जैसे- सिद्धक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र, कलाक्षेत्र, कल्याणकक्षेत्र आदि। ___ जहाँ से तीर्थंकर या अन्य सामान्य केवली मुक्त हुए हैं, उन्हें सिद्धक्षेत्र कहा जाता है। जहाँ से तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों में से एक या एकाधिक कल्याणक हुए हों, उन्हें कल्याणक तीर्थ कहते हैं। कुछ स्थान विशाल जिनबिम्बों के कारण भी तीर्थ कहे जाने लगते हैं । जैनबद्री को गोम्मटेश्वर बाहुबली की विशाल मूर्ति के कारण ही तीर्थ कहा जाता है। इसीप्रकार मूडबद्री को रत्नों के जिनबिम्बों के कारण और धवलादि ग्रन्थों की मूल प्रतियों के संरक्षण के कारण तीर्थ माना जाता है। खजुराहो और देवगढ अपनी कलात्मकता के कारण तीर्थ कहे जाते हैं। वे कलातीर्थ के रूप में ही प्रसिद्ध हैं।

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