Book Title: Shashvat Tirthdham Sammedshikhar
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 12
________________ शाश्वत तीर्थधाम सम्मेदशिखर कुछ तीर्थक्षेत्र आश्चर्यजनक घटनाओं से संबंधित होने के कारण अतिशय क्षेत्रों के नाम से जाने जाते हैं। महावीरजी ( चांदनपुर), पद्मप्रभजी ( बाड़ा), चन्द्रप्रभजी (तिजारा) आदि इसीप्रकार के क्षेत्र हैं । आजकल विभिन्न कारणों से कुछ नये तीर्थ भी विकसित हो रहे हैं। इसप्रकार कुल मिलाकर भारतवर्ष में तीन सौ से अधिक तीर्थक्षेत्र हैं और दस हजार से अधिक जिनमंदिर हैं, जो धर्माराधना के परम पवित्र धर्मस्थल हैं। ये सभी तीर्थक्षेत्र और जिनमंदिर जैन संस्कृति के आधार - स्तम्भ हैं, जैनसमाज की श्रद्धा के केन्द्रबिन्दु हैं, सामाजिक एकता और अखण्डता के सशक्त आधार हैं। इन्हीं के कारण उत्तर भारत की समाज पूर्व, पश्चिम और दक्षिण भारत का भ्रमण करती है; दक्षिण भारत की समाज भी पूर्व, पश्चिम और उत्तर भारत का भ्रमण करती है। इसीप्रकार पूर्वी भारत की समाज उत्तर दक्षिण और पश्चिम की यात्रा करती है और पश्चिमी भारत की समाज उत्तर, दक्षिण और पूर्वी भारत की यात्रा करती है। जैनसमाज की यात्रा के केन्द्रबिन्दु हैं, पूर्व के सम्मेदशिखर आदि सिद्धक्षेत्र और उदयगिरि - खण्डगिरि की गुफाएँ; पश्चिम के गिरनार और शत्रुंजय आदि तीर्थ, उत्तर के हस्तिनापुर आदि; दक्षिण के जैनबद्री, मूड़बद्री तथा मध्य भारत के खजुराहो और देवगढ जैसे कलातीर्थ आदि । इन्हीं केन्द्रबिन्दुओं को स्पर्श करती हुई भारतवर्ष की जैन समाज अपनी यात्रओं के माध्यम से परस्पर मिलती-जुलती है और साधर्मी वात्सल्य को वृद्धिंगत करती रहती है । ये तीर्थक्षेत्र ही सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले साधर्मी भाई-बहनों के सम्मिलन के एकमात्र साधन हैं; जो न केवल सामाजिक एकता को बल प्रदान करते हैं, अपितु राष्ट्रीय अखण्डता के भी सेतु हैं । वैसे तो सभी तीर्थ परम पावन ही हैं; तथापि उन तीर्थों की महिमा

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