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कार्य
किञ्चिद् वक्तव्य का प्रारम्भ और पूर्णाहूति ]
विश्व में आस्तिक अनेक दर्शनो विद्यमान हैं । अनास्तिक याने नास्तिक चार्वाक दर्शन भी विद्यमान हैं। इस में श्रास्तिक षड्दर्शनों की विशेषता विशेष हैं। जिन के नाम निम्नलिखित हैं ।
[१] जैन दर्शन, [२] बौद्धदर्शन, [३] साङ्ख्यदर्शन, [४] न्यायदर्शन, [५] वैशेषिकदर्शन, और [६] जैमिनीदर्शन | एछए दर्शनों में भी जंनदर्शन अद्वितीय, अलौकिक, अनेरा और अनोखा हैं ।
ये छः दर्शनों के विषय में १४४४ ग्रन्थ के रचयिता सुगृहीत नामवेय याकिनी महत्तरा धर्मसूनु प० पू० श्राचार्य प्रवर श्रीमहरिभद्रसूरीश्वरजी म० श्री ने 'श्री षड्दर्शनसमुच्चय ' ग्रन्थ की रचना ८७ श्लोक में सुन्दर की हैं । इस ग्रन्थ को देखकर मुझे भी षड्दर्शन के सम्बन्ध में संस्कृत भाषा में एक स्वतन्त्र ग्रन्थ सर्जन को भावना स्वर्गीय - साहित्य सम्राट् - व्याकरण वाचस्पति - शास्त्र विशारद - कविरत्नपरम शासन प्रभावक - परम पूज्य - परमोपकारी प्रगुरुदेव आचार्य प्रवरश्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म० सा० की विद्यमानता में हुई थी । पूज्यपाद प्रगुरुदेव ने भी प्रोत्साहित किया था, लेकिन अन्य अन्य कार्यवश से में इस ग्रन्थ का सर्जन नहीं कर सका ।
विक्रम सं. २०२८ और २०२६ के वर्ष का चातुर्मास मेरा उदयपुर [ मेवाड़ ] में हुआ। वहां पर इस ग्रन्थ को प्रारम्भ करके पूर्ण किया ।
प्रकाशित यह ग्रन्थ में मुझसे या प्रेस दोषादि कारण से रही हुई गलती को सुधार के मुझ को सूचित करें। जिससे द्वितीया वृत्ति में सुधारा होवे । — ग्रन्थकर्ता