Book Title: Sazzayamala Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 9
________________ अनुक्रमणिका. - - - सद्यायनुं नाम. सद्याय, प्रथम पद. ढाल. पृ. १३ए नाविन्नावनी सद्याय. कर्मे लखीयुं निश्चे रे होय. १-१ए। १४० सुगुरुगुणनी सद्याय. पंच महाव्रत सूधां पाले. १-१ए२ १४१ मूर्खनी सद्याय. मायाने वश खोटें बोले. १-२ए १४२ अध्यात्म सद्याय. किसके चेले किसके बे पूत. १-१७३ १४३ समकित सद्याय. समकित नवि लद्यु रे. १-१९४ १५४ आत्मोपदेश सद्याय. सासरिये एम जश्ये रे. १-२ए। १४५ आत्मोपदेशनी बीजी स० हूँ तो प्रणमुं सशुरु राया रे. १-२एए १४६ शीयल विषे शीखामण स सुण.सुण प्राणी शीखडी. ३-१ए। १४७ कुगुरुनी सद्याय.' शुभ संवेगी किरियाधारी. १-२ए १७ षट्साधुनी सण मनडु ते मोडं मुनि १-२ए १४ए शीखामणकोनेापवीतेविषेसःशीखामण देतां खरी रे. १-२०० .२५७ सात वारनी स ादित्य कहे जे मानवीने. १-२०० १५१ प्रसन्नचंड राजर्षिनी स मारगमा मुनिवर मल्यो. १-३०१ १५२ जीवोपदेश सण . सेवो सहगुरु नविजना. १-२०१ १५३ तेरकाठीयानी सघाय. सोनागी नाइ. १-२०२ १५५ षट्लावअथवाजावप्रकाशस श्रीसशुरुना प्रणमी पाय. ए.-२०३ १५५ षडावश्यक सद्याय. श्रीसजुरुने सदा प्रणमीजें. ५--२०॥ १५६ वैराग्यकारक संद्यायो , श्रवण कीर्तन सेवन. १-२१३ .१५७- शोल सुपननी संद्याय.. श्रीगुरु पद प्रणमी करी १-२२३ | १५७ उत्तराध्ययननी सद्याय. पवयणदेवी चित्त धरी जी.३६-२२५ १५ए नंदीषेण स० राजगृही नगरीनो वासी. १-२४४ १६० आयु अस्थिरनी स .उखां बेट्यांने सांधोए १-२४४ १६१ नवकार फलनी सण ए नवकारतणुं फल सा० १-२४५ १६२ अष्टनंगीनी स० सुगुरु सुदेव सुधर्मनु. १-२४५ १३. चेतनबोधनी स चेतन अब कलु चेतियें. --२४६ १६४ श्रात्माने शिक्षानी स० महारा आतम. १-२५६ .१६५ जीव उपदेशनी स चेतन चेतजो रे. “१--२४७ १६६ जोबन अस्थिरनी स . जो जो रे ए जोबनीयु में: १-श्वन - - - inPage Navigation
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