Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji

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Page 148
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org पांचसमिति त्रणगुप्ति विराधी, आठे, प्रवचनमाय, साधुतणे धर्मे प्रमादे, अशुद्ध वचन मन कायरे प्रा० श्रावकधर्मे सामायिक, पोसहमां मनवाळी; जे जयणापूर्वक ए आठे प्रवनचन माय न पालीरे प्रा० १० इत्यादि विपरीतपणाथी, चारित्र डोहोल्युं जेह; आभव परभव वळीरे भवोभव, मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा० ११ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बारभेदे तप नवि कीधो, छते योगे निजशक्ते, धर्मे मनवचकायाविरज, नवि फोरवीयुं भगतेरे प्रा० १२ तप वीरज आचार एणी परे, विविध विराध्या जेह; आभव परभव वळी रे भवोभव मिच्छा मि दुक्कडं तेहरे प्रा० १३ वळीय विशेष चारित्र केरा, अतिचार आलोइए, वीरजिणेसर वयण सुणीने, पाप मल सवि धोइएरे ढाळ बीजी (साहेलडीनी देशी ) पृथ्वी पाणी तेउ वाउ वनस्पति, १४० For Private And Personal Use Only ९ प्रा० १४

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