Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji

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Page 164
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्व मुनिवर जे हुआ, तेणे कीधां शरणा एहोजी संसारमाहिं जीवने, समरथ शरणां चारोजी गणिसमयसुंदर इम कहे, कल्याणमंगल कारोजी ३ लाखचोराशी जीवखमावीए, मनधरी परमविवेकोजी; मिच्छामिदुक्कडं दीजीए, जिनवचने लहीए टेकोजी १ सात लाख भू दग तेउ वाउना, दश चौदे वननाभेदोजी; षट् विगल सुरतिरिनारिकी, चउ चउ चौदे नरना भेदोजीर मुज वैरनहि केहशुं, सर्वशुं मैत्रीभावोजी गणिसमयसुंदर इम कहे पामीए पुन्य प्रभावोजी ३ पाप अढारे जीव ! परिहरो, अरिहंत सिद्धनी साखेजी; आलोयां पाप छूटीए भगवंत इणीपरे भाखेजी १ आश्रय कषाय दोयबांधवा, वळी कलह अभ्याख्यानोजी; रति अरति पैशुन निंदना; मायामोस मिथ्यात्वजी २ मन वच कायाए जे कीया, मिच्छा मि दुक्कडं तेहोजी; गणिसमयसुंदर इम कहे जैनधर्मनो मर्म एहोजी ३ धनधन तेदिन मुज कदिहोशे, हुं पामीश संयम सुधोजी; पूर्व ऋषिपंथेचालशुं, गुरु वचने प्रतिबुद्धोजी १ अंतप्रान्तभिक्षागौचरी रणवने काउस्सग्ग ले| जी; १५६ For Private And Personal Use Only

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