Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji

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Page 173
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औदारिक वैक्रिय आहारक, तैजस कार्मण पंच रे, पंच शरीर घर मानी बसियो, करतो कर्मनो संच रे. __ श्री शंखे०४ सुरापानी बकतो फरे वळी, धत्तुर भक्षक जेम रे, अवळी परिणतिथी आ आतम, स्वरूप भूल्यो तेम रे. श्री शंखे० ५ भवमां भमतां पुण्योदयथी, सद्गुरु सहेजे मळीया रे, बुद्धि शिव सुख पामे अविचळ, सकल मनोरथ फळिया __ श्री शंखे०६ मंत्र • ॐ नमो भगवते श्री जलं० चंदनं० यजामहे स्वाहा ।। पंचम पूजा दुहा सद्गुरू पंच महाव्रती, पंच महाव्रत धार, भावथी वास्तुक पूजना, कहेवे अति सुखकार. १ पुद्गल द्रव्यथी भिन्न छे, अचल अमल गुणवान्, शुद्ध बुद्ध परमातमा, चिदानंद भगवान. घर आतमनुं ओळख्युं, जेनो रूडो महेल, वास खरो मुज एहमां, वसतां शिवसुख सहेल. १६५ For Private And Personal Use Only

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