Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji
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औदारिक वैक्रिय आहारक, तैजस कार्मण पंच रे, पंच शरीर घर मानी बसियो, करतो कर्मनो संच रे.
__ श्री शंखे०४ सुरापानी बकतो फरे वळी, धत्तुर भक्षक जेम रे, अवळी परिणतिथी आ आतम, स्वरूप भूल्यो तेम रे.
श्री शंखे० ५ भवमां भमतां पुण्योदयथी, सद्गुरु सहेजे मळीया रे, बुद्धि शिव सुख पामे अविचळ, सकल मनोरथ फळिया
__ श्री शंखे०६ मंत्र • ॐ नमो भगवते श्री जलं० चंदनं० यजामहे स्वाहा ।।
पंचम पूजा
दुहा सद्गुरू पंच महाव्रती, पंच महाव्रत धार, भावथी वास्तुक पूजना, कहेवे अति सुखकार. १ पुद्गल द्रव्यथी भिन्न छे, अचल अमल गुणवान्, शुद्ध बुद्ध परमातमा, चिदानंद भगवान. घर आतमनुं ओळख्युं, जेनो रूडो महेल, वास खरो मुज एहमां, वसतां शिवसुख सहेल.
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