Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji

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Page 171
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीशंखे०३ नवतत्त्व षड्द्रव्य छे नित्य शाश्वतां रे, द्रव्य गुण पर्याय रूप, दो भेदे जीव दाखियो रे, तस लक्षण छे चिद्रुप. श्रीशंखे० ४ परिणामी पुद्गल जीव दो जाणीए रे, अनादि संबंध विचार, कर्ता कर्मनो आतमा रे, तेम भोक्ता हृदये धार.श्रीशंखे०५ शुभाशुभ कर्म ग्रही भोगी आतमा रे, वेदे शाता अशाता दोय, देव मनुज नारक तिरि रे, चउगतिमा भटके जोय. श्रीशंखे०६ जीवे कीधां पुण्य पाप ते भोगवे रे, पर पुद्गल संगे खास, राच्यो माच्यो पुद्गलमां वस्यो रे, बन्यो पुद्गलनो जीव दास. श्रीशंखे०७ प्रभु पूजा करतां प्राणिया सुख लहे रे नासे कर्माष्टक पास, सामिवच्छल नवकारशी रे, हेतु सुखनां दीसे खास. श्रीशंखे० ८ शुभ भावे नैवेद्य थाळमां मूकीने रे, प्रभु आगळ धरीए चंग, रत्नत्रयी कमळा वरे रे, बुद्धि शाश्वत पदरंग. श्रीशंखे० ९ मंत्र - ॐ नमो भ० श्री० पार्श्वनाथाय जलं० चंदनं० १६३ For Private And Personal Use Only

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