Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Padmaratnasagarji

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (नमो रे नमो श्री शत्रुजय गिरिवर-ए देशी) वास्तुक भाव पूजा निज भावे, चेतननी शुद्ध दाखी रे, वास बसे चेतन जे मध्ये, तेहनी पूजा भाखी रे. श्री शंखे०१ असंख्य प्रदेश आतमना जाणो, शुद्ध वास जीव जोय रे, गुणपर्याय स्वभाव अनंता, एकेक प्रदेशे जोय रे. श्री शंखे०२ ज्ञाता ज्ञेय ने ज्ञान त्रिभंगी, आतममांही समाय रे, अस्ति नास्ति समकाले साधे, एवो आतमराय रे. श्री शंखे०३ धर्म ने पुद्गलाकाश, तेह तणा प्रदेश रे, गुणपर्याय धर्म तस केरा, नहि एक जीव गुण लेश रे. __ श्री शंखे०४ शुद्ध बुद्ध परमात्म स्वरूप, अव्याबाध अभंग रे, अविनाशी अकलंक अभोगी, भोगी अयोगी असंग रे. श्री शंखे०५ नित्यानित्य ने एकानेक, सद्गतभाव विचार रे, वक्तव्यावक्तव्य ए आठ, पक्षतणो आधार रे. श्री शंखे० ६ १६६ For Private And Personal Use Only

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