Book Title: Sanmati Tirth Varshik Patrika
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 7
________________ सन्मति - तीर्थ ४०) 'ग्रंथ' अध्ययनातील गुरुमहिमा ४१) उपसर्गपरिज्ञा में पार्श्वस्थों का स्त्रीसंगविषयक दृष्टिकोण ४२) 'ग्रंथ' अध्ययनातील आदर्श शिक्षक ४३) सूत्रकृतांगाच्या निमित्ताने भगवान महावीरांना पत्ररूपाने आमंत्रण ओसवाल ललिता पारख सुरेखा पारख विजय ४४) 'आदान' अध्ययन के पाँच संक्षिप्त सुभाषित ४५) 'वैतालीय' अध्ययन में वर्णित मुनि की सहिष्णुता ४६) उदगेण जे सिद्धिं उदाहरतिः काव्यद्वारा सादरीकरण समदडिया चंदा ४७) 'ग्रंथ' अध्ययनातील विभज्यवाद संचेती लीना ४८) 'वीर्य' अध्ययन एक समीक्षा ४९) सूत्रकृतांग में प्रयुक्त उपमाएँ ५०) काँटों में गुलाब ५१) उपसर्गपरिज्ञा ५२) संबुज्झह ! किं न बुज्झह ? ५३) आदर्श शिक्षक कैसे बनें ? ५४) 'ग्रंथ' अध्ययन आणि आदर्श शिक्षक ५५) 'आदान' अध्ययनातील पाच सुभाषिते नवलाखा आरती निर्वाण अर्जुन ओसवाल छाया शहा जयबाला शेठिया राजश्री शिंगवी पुष्पा शिंगवी रंजना शिंगवी विनोदिनी श्रीश्रीमाळ ब्रिजबाला सुराणा सीमा भन्साळी संतोष सन्मति-तीर्थ (३) सूत्रकृतांग में अन्धविषयक दृष्टान्त कुमुदिनी भंडारी सूत्रकृतांग में हमें चार जगहों पर अन्ध के दृष्टान्त दिखायी देते हैं । १) जैसे अन्धव्यक्ति दूसरे अन्ध को मार्ग में ले जाता हुआ उन्मार्ग में पहुँच जाता है वैसे अज्ञानवादी असंयम का अंगीकार करके मोक्षमार्ग से भटक जाते हैं। २) जैसे कोई अन्धव्यक्ति छेदवाली नौका पर आरूढ होकर, नदी पार करना चाहता है परन्तु बीच में ही डूब जाता है वैसे मिथ्यात्वी अनार्य श्रमण संसार पार करना चाहता है परन्तु पार नहीं करता । ३) अन्धे के समान है ज्ञानचक्षुहीन अज्ञानी जीव ! तू, सर्वज्ञ के वचनों पर श्रद्धा रख ! ४) जैसा नेत्रहीन व्यक्ति हाथ में दीपक होते हुए भी, इधर-उधर की चीजों का रंग-रूप नहीं देख पाता वैसे अक्रियावादी लोग, कर्म के परिणाम देखते हुए भी, उन्हें देखते नहीं । इन सभी दृष्टान्तों में अन्धव्यक्ति की तुलना मिथ्यादृष्टि, अज्ञानी और ज्ञानचक्षुहीन लोगों के साथ की गयी है। ज्ञानप्राप्ति में आँखों का सहभाग जरूरी है, इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन क्या सभी अन्ध मिथ्यादृष्टि या अज्ञानी होते हैं ? जैन धर्मेतिहास में अन्धव्यक्ति के दीक्षित होने का एक भी उदाहरण नहीं पाया जाता। किसी भी तरह की इन्द्रिय-विकलता, व्यक्ति को दीक्षा के अयोग्य ही मानी गयी है। दीक्षा के बाद अगर ऐसा कुछ प्रसंग आता है, तो उन्हें दीक्षा छोड़नी

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