Book Title: Sanmati Tirth Varshik Patrika
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 19
________________ सन्मति - तीर्थ (२) तज्जीव- तच्छरीरवाद : शरीराकार में परिणत महाभूतों से आत्मा की उत्पत्ति । श्रीमद्जी का मत : १) मृत शरीर में पाँचों महाभूत विद्यमान होने पर भी शरीरी मर गया ऐसा व्यवहार क्यों ? यह सिद्ध करता है पंचमहाभूतों से भिन्न आत्मा की सत्ता है, जिस कारण शरीर के विभिन्न अवयवरूप यन्त्र अपना अलग-अलग कार्य करते हैं । २) जड किसी भी काल में चेतन नहीं होता और चेतन जड नहीं होता। दोनों सर्वथा भिन्न स्वभाव के पदार्थ हैं। परस्पर गुणों का संक्रमण कर के दोनों कभी समान नहीं होते । ३) आत्मा कोई भी संयोग से उत्पन्न नहीं होता । ४) इन्द्रियों को अपने-अपने विषय का ज्ञान हैं परन्तु दूसरी इन्द्रियों के विषय का ज्ञान नहीं है। पाँचों इन्द्रियों के विषय को जाननेवाला और इन्द्रियों के ५) नष्ट हो जाने पर भी स्मृतिमें रखनेवाला इन्द्रियों से भिन्न आत्मा है । जगत में जो विचित्रता दिखाई देती है, यह शुभाशुभ कर्म के बिना संभव नहीं। दूसरा श्रीमद्जी को ८ वर्ष की उम्र में जातिस्मरण ज्ञान हुआ। यह दोनों पुनर्जन्म सिद्ध करता है । (३) चार्वाक् से विपरीत आत्मद्वैतवाद (एकात्मवाद) नैयायिक : अ) आत्मा के अतिरिक्त जड तत्त्व कोई नहीं है । ब) जैसे एक ही पृथ्वीपिण्ड (समुद्र, पर्वत, नगर इ. ) नाना रूपों में दिखाई देता है, उसी प्रकार एक ही आत्मा नाना रूपों में दिखाई देता है । सन्मति - तीर्थ क) 'वेदान्ती' ब्रह्म के अतिरिक्त समस्त पदार्थों को असत्य मानते हैं । एकात्मवाद श्रीमदनी कर सकता । अ) आत्मा सर्वव्यापी होने से गमन नहीं अ) शरीरव्यापी होने से राग-द्वेष में (परभाव में) कर्म का कर्ता होने से नाना गतियों में गमन करता है । ब) ध्रौव्यात्मक क) एकान्त कूटस्थ नित्य ब) (४) आत्मषष्ठवाद श्रीमद्जी अ) पाँच महाभूत और छट्टा आत्मा है। अ) पृथ्वी, अप्, तेज, वायु आकाश जड (अजीव) है । ब) "आत्मा द्रव्ये नित्य छे, पर्याये पलटाय" (गाथा ६८) क) एकान्त नित्य मानने पर कर्तृत्व परिणाम नहीं और कर्म का सर्वथा अभाव होगा । चेतनायुक्त (आत्मा) आत्मा लोक दोनों नित्य हैं । क) सभी पदार्थ सर्वथा नित्य हैं। ध्रौव्य युक्त असत् की उत्पत्ति नहीं, सत् का नाश नहीं । ब) उत्पाद, व्यय, (क) परिणामी नित्य (५) क्षणिकवाद -३ बौद्धों का मत (दो रूपों में) अ) अफलवाद (पञ्चस्कन्धवाद) : क्षणमात्र स्थित रहनेवाले रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा और संस्कार ये पाँच ही स्कन्ध हैं, आत्मा नामक पृथक् पदार्थ नहीं ।

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