Book Title: Sanmati Tirth Varshik Patrika
Author(s): Nalini Joshi
Publisher: Sanmati Tirth Prakashan Pune

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Page 28
________________ अन्मति-तीर्थ सकते, तो फिर उस ज्ञान का क्या फायदा ? इसलिए अज्ञानही अच्छा है।" ऐसा कहनेवाले अज्ञानवादी वास्तव में मिथ्यावादी है, क्योंकि वे स्वयं तत्त्व से अनभिज्ञ होते हुए भी, अपने आपको ज्ञानी मानकर दूसरों को उपदेश देते हैं । वे यह नहीं जानते कि 'अज्ञानवाद' का परिचय कराना, या अज्ञानवाद' की श्रेष्ठता बताना, अज्ञानवाद का ढाँचा बनाना, यह सब 'ज्ञान' से ही अन्मति-तीर्थ आवश्यकता होती है । अपने सुखदुःखों का कर्ता भी आत्मा स्वयं है और भोक्ता भी स्वयं ही है। इसलिए केवल विनयवाद से मोक्षप्राप्ति मानना, मिथ्या है। सम्भव है । इसलिए 'अज्ञान' को कल्याण का कारण मानना केवल असम्बद्ध है और संयुक्तिक, या तर्कशुद्ध भी नहीं लगता । २) विनयवाद : विनयवादी, वस्तुस्वरूप न समझते हुए, सत्य, असत्य, अच्छा, बुरा इनकी परीक्षा किये बिना ही केवल विनय से मोक्षप्राप्ति होती हैं' ऐसा मानते हैं । 'विनयवाद' से कुछ मिलता जुलता संदर्भ, दानामा और प्राणामा प्रव्रज्या के वर्णन में भगवतीसूत्र में मिलता है । 'दानामा प्रव्रज्या' अर्थात् देवता, राजा, माता, पिता आदि सभी का मन, वचन, काया से दान देकर विनय करना होता है । 'प्राणामा प्रव्रज्या' अर्थात् सामने जो भी दिखे, चाहे वह मनुष्य हो या पशु सभी को विनयपूर्वक प्रणाम करना होता है । जैन दर्शन में विनय को 'धर्म का मूल' एवं 'आभ्यंतर तप' कहा है । कोई सैद्धान्तिक आधार या तत्त्वाधार न देखते हए केवल विनय करना यह या तो केवल मूढता है, या फिर ऐसे विनय में शरणागति का भाव है जिसे जैन दर्शन में कोई स्थान नहीं है । जैन दर्शन का कहना है कि शरणागति से कर्मबन्ध क्षीण नहीं होते, कर्मबन्ध से मुक्ति पाने के लिए पुरुषार्थ करने की अक्रियावाद : अक्रियावाद के बारे में चूर्णिकार कहते हैं कि, लोकायतिकचार्वाक, बौद्ध, सांख्य आदि अनात्मवादीही अक्रियावादी है । अक्रियावादियों का कहना है कि “आत्मा का अस्तित्व ही नहीं है, तो कोई क्रिया भी नहीं हो सकती और क्रियाजनित कर्मबन्ध भी नहीं हो सकते ।" इस तरह अक्रियावादी कर्मबन्ध के भय से क्रिया का ही निषेध करते हैं । आक्षेप लेने पर एक पक्ष कहता है 'क्रिया है पर चय संचय नहीं है ।' जबकी दूसरा पक्ष कहता है 'क्रिया है, कर्मबन्ध भी है और चय भी है।' इस तरह दोनों पक्ष में एकवाक्यता भी नहीं है, परस्परविरोधी वाक्य बोलकर वे लोगों को ठगते हैं । सांख्य दर्शन आत्मा याने पुरुष को अक्रिय मानता है और प्रकृति को क्रियाशील मानता है । बौद्ध दर्शन में आत्मा को 'क्षणिक' मानते हुए भी गौतम बुद्ध की पूर्वजन्मधारित जातककथाएँ सत्य मानते है । 'सूत्रकृतांग' में अक्रियावादियों को अन्धे मनुष्य की उपमा दी है, जो हाथ में दीपक होते हुए भी नेत्रविहीन होने से पदार्थों को नहीं देख सकता । वैसे अक्रियावादी प्रज्ञाविहीन होने के कारण विद्यमान पदार्थों को भी नहीं देख सकते । जैन दर्शन में आत्मा को गुण और पर्याय से युक्त द्रव्य माना है । इसलिए गुण की अपेक्षा से आत्मा का त्रैकालिक अस्तित्व माना है और पर्याय की

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