Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak Author(s): Parvati Sati Publisher: Kruparam Kotumal View full book textPage 9
________________ ...... भूमिका. . कासं त्य धर्मामिलासी विद्वज्जनों को वि दित हो कि इस घोर कलिकाल में विशेष करके मतियों की सम्मति न होनेसे और पूर्व की अपेक्षा प्रीति के कम दोजाने से अर्थात् परस्पर विरोध होने के कारण, अनेक प्रकार के मत मतान्तरों का प्रचार हो रहा है, जिसको देख कर विधान पुरुष आत्मार्थी निष्पष्टिवाले कुछ शोक सा मानकर बैठ रहते हैं, परन्तु इतना तो विचारना ही पता है कि इस मनुष्यं लोक में दो प्रकार के मनुष्य हैं; (२) आर्य और (१) अनार्य, अनार्यों का तो कहना ही क्या है? जो आर्य हैं उनमें नी दो प्रकार के मत हैं: (१) आस्तिक, और (२) नास्तिक. “आस्तिक” उसको कहते हैं “जो होते पदार्थ को होता कहे"; अर्थात्-- . . . . 7Page Navigation
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