Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 11
________________ 'कहे सो "नास्तिक"; यथा [२] परमेश्वर नहीं, [२] जीव नहीं, [३] उपादान कारण परमाणु नहीं, [४] पुण्य-पाप नहीं, [लोक-परलोक-नर्क-स्वर्ग-नहीं, [६] बंध-मोद नहीं, [3] धर्मावतार तीर्थकर जिनेश्वर देव नहीं, धर्म नहीं, धर्मोपदेशक नहीं, और [] कर्मावतार बलदेव-वासुदेव नहीं. यह चिह्न नास्तिकों के हैं. । यथा पाणिनीय अपने सूत्रमें यद कहता है:-“परलोकोऽस्ति मतिर्यस्यास्तीति आस्तिकः” और “परलोको नास्तिमतिर्यस्यास्तीति नास्तिकः' परन्तु यह आस्तिक-नास्तिकपन नहीं है, जैसे कई एक अल्पज्ञ जन कह देते हैं कि, जो हमारे माने हुए मत को तथा शास्त्र को माने सो आस्तिक, और जो न माने सो ना. स्तिक”. यह आस्तिक और नास्तिक के नेद नहीं हैं; नला! यों तो सब ही कद देंगे कि, जो हमारे मत को स्विकार न करे सो नास्ति

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