Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 10
________________ १. सर्वझ-सर्वदर्शी-निष्कलंक-निष्प्रयोजन-शुक्ष चेतन “परमेश्वर-परमात्मा” है; -: चेतना-वक्षण,सोपयोगी,सुख सुखके वेदक (अर्थात् जाननेवाले) अनन्त 'जीव' नी हैं। . .. ३. रूपी (रूपवाले) सर्व पदार्थोका - पादान कारण परमाणु आदिक "जम"नी हैं; ४. पुण्य-पाप रूप “कर्म"नी है, तिसका “फल" नी है; ,, ५. “ लोक ”-परलोक-"नर्क" "देवलोकरनी है; . ६. "बंध” और “मोद" नी है; 5. “धर्मावतार" तीर्थकर जिनेश्वर देव जी हैं; "धर्म" जी है; और “धर्मोपदेशक" जी हैं; 5. “कर्मावतार" बलदेव-वासुदेवजी हैं. इत्यादिक ऊपर लिखे पदार्थों को 'अस्ति' कहे सो "आस्तिक", और जो 'नास्ति' - - - - - - - - - - - - - - - - -

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