Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 12
________________ ४ कं. यह प्रास्तिक-नास्तिकपन क्या हुआ ? यह तो जगमा ही हुआ ! 2 बस ! नास्तिकों की वात तो अलग रदेने दो. अब प्रास्तिकों में भी बहुत मत हैं. परन्तु विचारदृष्टि से देखा जावे तो प्रास्ति-कों में दो मत की प्रवृत्ति बहुत प्रसिध हैं, (1) जैन और (२) वैदिक. क्योंकि यार्थ्य लोगों में कई शाखे जैनशास्त्रों को मानती हैं, प्रौर और बहुत शाखें वेदों को मानती हैं, अर्थातू जैनशास्त्रों के माननेवालों में कई मत हैं, और वैदिक मतानुयायीयों में तो बहुत ही मतभेद हैं. अब विद्वान पुरुषों को विचारणीय यह है कि, इन पूर्वोक्त दोनो में क्या २ नेद हैं ? वास्तव में तो जो अच्छी बातें हैं उनको २ तो सब ही विद्वानं प्रमाणिक समऊते हैं.. और भेद जी हैं; परन्तु सब से तो जैन और वेद में ईश्वर कर्त्ता बडा द कर्त्ता के वि

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