Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak Author(s): Parvati Sati Publisher: Kruparam Kotumal View full book textPage 7
________________ नों को भी लाभ होता है ऐसा सिद्ध किया है. १२७ १२ पृच्छकः-अजी, हमने सुना है कि जैन शास्त्रों में मांस खाना लिखा है. इस्का सूत्र साख से । खण्डन किया है और शास्त्रार्थ मानने की . विधि लिखी गई है... ... ... १३५ । ८ १२ प्रश्न-अजी, हमारी बुद्धि तो चकित (हैरान है) कि मत तो बहोत हैं परन्तु एक दूसरे में भेद - पाया जाता है तो फेर सच्चा मत कौनसा है ? इस्का निर्पक्षता से उत्तर. और कई कहते हैं कि जैन में छोटे२ जीव जतुओंकी दया है । इस्का समाधान. और समाजियों के शास्त्र और धर्म का ढग लिखा गया है और वेदों को कौनर मानते हैं और उन्के न्यारेर ढगं भी लिखे हैं. वैदिक मतकी नदीये नास्तिक समुद्र में मिलती है ... ... , १४३ .. १३ -१३ प्रश्न-जैन में आयु अवगाहनादि बहुत कही है इस्का उत्तरः-सूत्रोंका कहना तो सत्य है परन्तु जैसे . वेदों से विरुद्ध पुराणों में कई गपौडे पेट भराऊनि घढ धरे हैं ऐसे ही जैन में भी सूत्रों से विरुद्ध ग्रन्थकारों ने ग्रन्थों में कई गपोडे लिख धरे हैं जिस से पराभव हो कर कई अझ जन सत्य धर्म से हाथ धो बैठे है इत्यादि. ... ... १६५ , २ " प्रभ-~-सर्व मतों का सिद्धांत मोक्ष है सो तुम्हारे । मत में मोक्ष ही ठीक नहीं मानी है, इस्के उत्तर में मोक्ष का स्वरूप भलि भांति सवि. स्तार प्रश्नोत्तर कर, के अपना जीवन कथन सहित लिखा गया है. ... .... १७० १५ प्रभ-तुम मोक्ष से वापस आना नहीं मानते है तो पुष्टि का सिलसिला बन्दना हो जायेगा ? .Page Navigation
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