Book Title: Samyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Kruparam Kotumal

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Page 5
________________ सूची पत्र.... नं. . विययः पृष्ठ अंक-पंक्ति अंक. , प्रम-तुम ईश्वर को मानते हो किम्वा नहीं ? सत्तर-हां, मानते हैं: सूत्र 'साख सहित ईश्वर सिद्धि . की गई है , ... ... ... . २ मभ-तुम ईश्वर, को कर्त्ता मानते हो किम्वा नहीं ' उत्तर-नहीं; क्यूं कि ईश्वर को कर्त्ता मानने से भर में चार दोष सिद्ध होते हैं उन चारों ... दोषों का दृष्टांत सहित विस्तार ... ७ . भौर गुरु चेले के प्रश्नोत्तर कर के प्रगट किया । - है कि कर्मों का करना भोगना कर्मों के भ. 'खत्यार है कि जीव के वा ईश्वर के ... २८ । । ३ प्रभ-चोर चोरी तो आप ही कर लेता है परन्तु . . कैद में तो आप ही नहीं जा धसता है. कैद में पहुंचाने वाला भी तो कोई मानना चाहिये. मुत्तर में इस पक्ष का खण्डन और जीव स्वतंत्रता से कर्म करता है फिर वह कर्म संधित हो कर फलदाता हो जाय और जीव 'परसंत्रता से निमित्त कारणों से भोगे इस्का विस्तार स्वमत परमत के शास्त्रों की शाख' ।' सहित किया गया है, ... ... ५. पार ___ म-कर्म तो जड है यह पलदायक कैसे हो . सकते हैं? उत्तर-शराब के दृष्टांत सहित दिया है ७२ ११. ५ मम-भलाजी ! परलोक में कर्म कैसे जाते हैं और ... ' ईभर के विना कमों को याद कौन करावे? . ' .. सर में इस पक्ष, का सपदन और परकोक

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