Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 11
________________ पूर्णता जीव अपूर्ण है, शिव पूर्ण है। अतः अपूर्णता के घोर अंधकार में से पूर्णता के उज्ज्वल प्रकाश की ओर जाने का उपक्रम करें। क्योंकि समग्र धर्मपुरुषार्थ का ध्येय पूर्णता की प्राप्ति है। यही अंतिम ध्येय है, आखिरी मंज़िल है। फलस्वरुप, आत्मा की ऐसी परिपूर्णता प्राप्त कर लें कि कभी अपूर्ण होने का अवसर ही न आये। अपूर्णता का प्रादुर्भाव होने की संभावना ही न रहे ! युग-युगांतर से मोह और अज्ञान की गहरी खाई में दबी चेतना को, पूर्णता की प्रकाश-किरण आकर्षित करती रहती है। ___ अपूर्णः पूर्णतामेति अपूर्ण पूर्णता पाये ! ग्रंथकार महात्मा ने कैसी गहन-गंभीर फिर भी मृदु बात का सूत्रपात किया है ! एक ही पंक्ति में, गागर में सागर भर दिया है। आत्मा की पूर्णता प्राप्त करने हेतु कर्मजन्य पदार्थों से रिक्त हो जाएँ ! ज्ञानसार

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