Book Title: Samipya 2000 Vol 17 Ank 03 04
Author(s): Bhartiben Shelat, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 45. तत्त्वस्य संमुखे जाते अमनस्कं प्रजायते । अमनस्केऽपि संजाते चितादिविलयो भवेत् ॥ ३३ ॥ अमनस्कयोगः - पूर्वार्ध : -३३. 'Amanska-Yoga' : edi. Pt. Girishkumar Parmanand Shah. First edition 1992. Sanskrit Seva Samiti, Ahmedabad. 46. चित्तादिविलये जाते पवनस्य लयो भवेत् । मनःपवनयो शादिन्द्रियार्थं विमुञ्चति ॥ ३४ ॥ अमनस्कयोगः - पूर्वार्ध :- ३४. 47. सुखदुःखे न जानाति शीतोष्णं न च विन्दति । विचारं चेन्द्रियार्थानां न वेत्ति विलयं गतः ॥ ३८ ॥ अमनस्कयोग: - पूर्वार्ध :- ३८. 48. Sec अमनस्कायोग:- पूर्वार्ध:: ३९, ४०, ४१, ४२, ४५. 49. See अमनस्कायोग:- पूर्वार्ध:: ४६ to ९६. 50] यत्र यत्र मनो याति न निपावा ततस्ततः । अवारित क्षयं याति वार्यमाणं तु वर्द्धत ।। ७२ ॥ अमनस्कयोगः - उत्तरार्धः :- ७२. 51. यथा निरङ्कशो हस्ती कामान् प्राप्य निवर्तते । अवारितं मनस्तद्वत् स्वयमेव विलीयते ॥ ७३ ॥ अमनस्कयोग: - उत्तरार्धः :- ७३. 52. यथा तुला तुलाधारश्चञ्चलां कुरुते स्थिराम् । याने सौख्ये सदाभ्यासान्मनोवृत्तिस्तदात्मनि ॥ ७६ ॥ अमनस्कयोगः - उत्तरार्ध :- ७६. 53. इन्द्रियग्राहपदयोनिश्वासोच्छसपक्षयोः । संक्षीणयोर्मन: पक्षी स्थिरसत्तोऽवसीदति ॥ ८६ ॥ अमनस्कयोगः - उत्तरार्ध :- ८६. 54. यथा संहियते सर्वमस्तं गच्छति भास्करे । करजालं तथा सर्वममनस्के विलीयते ॥ १० ॥ अमनस्कयोग:- उत्तरार्ध :- ९०.. 55. Dr. G. M. L. Shrivastava : The Yoga : Sri Aurobindo and Patanjali - ch. V. Vishwakala Prakashana. Delhi - 1987. See Shri Dr. Gopinath Kaviraj : "Amar Vani" (Hindi) - first edition - 1968. - Sri Sri Anandamayl Sangh - Varanasi. 56. १८] [सामीप्य : मोटोबर, २०००-भार्थ, २००१ For Private and Personal Use Only

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