Book Title: Samipya 2000 Vol 17 Ank 03 04
Author(s): Bhartiben Shelat, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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नेपाल की एक मनोज्ञ विश्वरूप विष्णु प्रतिमा
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डो. ए. एल. श्रीवास्तव *
भारतवर्ष के समान नेपाल की मूर्तिकला भी अत्यन्त प्राचीनकाल से ही विकसित होती आयी है। नेपाल एक हिन्दु राष्ट्र है । अतएव वहाँ भी वैदिक ब्राह्मण धर्म-सम्बन्धी देवी-देवताओं की एक से बढकर एक सुन्दर और प्रतिमालक्षणों से संयुक्त मूर्तियाँ गढी गयी है । इस आलेख में नेपाल की एक अनूठी और दुर्लभ विष्णु की प्रतिमा पर प्रकाश डाला जा रहा है। विष्णु की पूर्व मध्यकालीन इस प्रतिमा में उनके विश्वरूप का प्रदर्शन किया गया है ।
प्रतिमा का वर्णन करने से पूर्व विष्णु के विश्वरूप का संक्षिप्त परिचय जान लेना आवश्यक है। शिल्पग्रंथो में विष्णु के विभिन्न रूपों का विकास मुख्यतः कई विचारधाराओं के माध्यम से हुआ है। एक विचाराधाराके अनुसार, सृष्टि, स्थिति और संहार के पीछे विष्णु की 'इच्छा' प्रधान है। सृष्टि की इच्छा से विष्णु लक्ष्मी का सहयोग चाहते है जो 'भूति' और 'क्रिया' है । इस प्रकार 'इच्छा' 'भूति' और क्रिया' इन तीनों से षड्गुणों की उत्पत्ति होती है। ये षड्गुण है, ज्ञान, ऐश्वर्य, शक्ति, बल, वीर्य और तेजस् । ये ही गुण सृष्टि के उपादान हैं। फिर इन दो-दो गुणों से तीन मूर्त रूप बनते
हैं जो संसार में संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हैं। वासुदेव में सभी गुण हैं। संकर्षण में ज्ञान और बल, प्रद्युम्न, में ऐश्चर्य और वीर्य, तथा अनिरुद्ध में शक्ति और तेजस् की प्रधानता है। यही वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध वासुदेव संप्रदाय के चार प्रमुख देव माने गए थे ।
आगे चलकर विष्णु के छः गुण और उनके शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि चार आयुधों के गुणन से उनके २४ स्वरूपों की कल्पना की गई है। ये २४ नाम है १. वासुदेव, २. केशव, ३. नारायण, ४. माधव, ५. पुरुषोत्तम, ६. अधोक्षज ७. संकर्षण, ८. गोविन्द, ९. विष्णु, १०. मधुसूदन ११. अच्युत, १२. उपेन्द्र, १३. प्रद्युम्न १४. त्रिविक्रम, १५. नरसिंह, १६. जनार्दन, १७. वामन, १८. श्रीधर, १९. अनिरुद्ध २०. हृषीकेश, २१. पद्मनाभ, २२, दामोदर, २३. हरि और २४. कृष्ण । विष्णु के ये सभी २४ स्वरूप समान हैं, परन्तु उनके चारों हाथों में आयुधों की स्थिति भिन्न-भिन्न है ।
दूसरी विचारधारा विष्णु के दशावतारों की है जिनमें उनके स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न रहते है। ये अवतार हैं - मत्स्य, कूर्म (दोनों अपने नैसर्गिक रूपों में), नरसिंह, वराह ( दोनों के शीश सिंह और वराह के किन्तु शेष धड मानव का, किंतु कतिपिय प्रतिमाओं में सम्पूर्ण शरीर नैसर्गिक भी दिखाया गया है), वामन, राम, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि ।
इन दोनों विचारधाराओं से हटकर एक तीसरी विचारधारा के अनुसार विष्णु के कुछ विशिष्ट स्वरूपों की कल्पना की गयी जिनमें वैकुण्ठ, अनंत, त्रैलोक्यमोहन और विश्वरूप आते है। ये चारो स्वरूप चतुर्मुख बताए गए ★ निवृत्त अध्यक्ष, इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग, अलाहाबाद युनिवर्सिटी, अलाहाबाद
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[सामीप्य : ऑटोजर २०००-भार्थ, २००१
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