Book Title: Samipya 2000 Vol 17 Ank 03 04
Author(s): Bhartiben Shelat, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
और सर्वमान्य समाधान प्रस्तुत करेंगे।
संदर्भ एवं टिप्पणी १. बलराम श्रीवास्तव, 'रूपमण्डन', वाराणसी १९८९, भूमिका, पृ. ४ २. तदैव, भूमिका, पृ. ५८ ३. नीलकण्ठ पुरुषोत्तम जोशी, 'भारतीय कला को राजस्थान की देन' द रिसर्चर (राजस्थान पुरातत्त्व एवं संग्रहालय
विभाग की शोध पत्रिका), वाल्यूम १६-१७, १९९५-१९९६, जयपुर, पृ. ६८, टि. १३
द्वादश आदित्य : धाता, अर्यमा, मित्र वरुण, इन्द्र, विवस्वान, पूषा, पर्जन्य, अंश, भग, त्वष्टा और विष्णु ५. आठ वसुः अनल, अनिल, आप, धर, ध्रुव, प्रत्यूष, प्रभाष तथा सोम. ६. एकादश रुद्र : तत्पुरुष, अघोर, ईशान, वामदेव, मृत्युंजय, किरणाक्ष, श्रीकण्ठ, अहिर्बुध्य, विरूपाक्ष, बहुरूप
और त्र्यम्बक (रूपमण्डन के अनुसार) ७. मथुरा-संग्रहालय संख्या ४२-४३.२९८९, द्रष्टव्य ए. एल. श्रीवास्तव, 'प्राचीन भारतीय देवमूर्तियाँ, (लखनऊ,
१९९८), चित्र सं. ८. राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली द्रष्टव्य रत्नचन्द्र अग्रवाल, 'नृसिंह-वराह-विष्णु इमेजेज़ ऐण्ड सम एलाइड
प्राबलेम्स', ललित कला (ललित कला अकादमी की शोध पत्रिका), नई दिल्ली, वाल्यूम १६, पृ. १४, फलक १, चित्र सं.२ द्रष्टव्य गोपाल कृष्ण अग्निहोत्री, 'कन्नौज : पुरातत्त्व और कला', कन्नौज, १९७८ , चित्र ९८, १००, १०१, नी.पु. जोशी, 'कन्नौज की दो विश्वरूप प्रतिमाएँ', संग्रहालय-पुरातत्त्व पत्रिका (राज्य संग्रहालय, लखनऊ से
प्रकाशित शोध पत्रिका), संख्या ४५-४६ संयुक्तांक, पृ. ९-१२, चित्र १-८. १०. विष्णुधर्मोत्तर पुराण, ३/८५/४३ : 'चतुर्मखः स कर्तव्यः प्रागुक्त वदनः प्रभः' तथा ३/४४/११ : मुख
कार्याश्चत्वारो बाहवो द्विगुणस्तथा. ११. जयाख्य संहिता, ६/७४ (बडौदा, १९३१) : चतर्वक्त्रं सुनयनं सुकान्तं पद्मपाणिनम्' १२. देखिए टिप्पणी संख्या ४.
आभार-प्रदर्शन इस लेख में प्रो. कृष्णदेव के द्वारा किए गए विवेच्य प्रतिमा को विस्तृत वर्णन का भरपूर उपयोग किया गया है, अस्तु लेखक उनके प्रति अपना अकृतिम आभार प्रकट करता है।
नेपाल की एक मनोज्ञ विश्वरूप विष्णु-प्रतिमा]
[४५
For Private and Personal Use Only