Book Title: Samipya 2000 Vol 17 Ank 03 04
Author(s): Bhartiben Shelat, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्वरूप विष्णु की मूतियों का विकास उनके वैकुण्ठ स्वरूप से हुआ था। इसी लिए प्रायः सभी विश्वरूपमूर्तियों में मानव मुख केवल एक है और इसके पार्थो मे सिंह और वराहमुख बनाए गए हैं तथा कतिपय मूर्तियों में सिंहमुख और वराहमुख के साथ-साथ मत्स्य और कूर्म भी पार्थों में जोड दिये गये हैं जो विष्णु के चार प्रारंभिक अवतारों के द्योतक हैं - मत्स्य, कूर्म, नृसिंह और वराह । किन्तु नेपाल की इस विश्वरूप-प्रतिमा में कोई पशु अथवा पशुमुख नहीं हैं और उनके स्थान पर सभी मानव मुख बनाये गये हैं। विश्वरूप विष्णु की प्रतिमा के ये सभी मानव मुख एक विशिष्टता एवं पृथक् परम्परा का प्रदर्शन करते हैं । ४. द्वादशमुखों का अंकन नेपाल की इस विश्वरूप विष्णु-प्रतिमा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता इसमें अंकित विष्णु के द्वादश मुख हैं। मुखों की यह संख्या इस प्रतिमा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और विचारणीय पक्ष है। प्रो. कृष्णदेव ने ब्रह्मासमेत इस मूर्ति के दस मुख बताए हैं । ब्रह्मा को छोड़कर विष्णु के नौ मुखों की ही गणना उन्होंने की है। स्पष्ट है कि जितने मुख इस प्रतिमा में दृश्यमान हैं, उतनी संख्या ही उन्होंने स्वीकार की है। किन्तु इन नौ मुखों की संख्या में कोई संगति उन्होंने नहीं बिठायी है । मेरे विचार से इस मूर्ति में नौ के स्थान पर बारह मुखों के होने का संकेत ग्रहण करना चाहिए । जिस प्रकार चतुर्मुख वैकुण्ठ, चतुर्मुख ब्रह्मा और चतुर्मुख शिव के मूर्ति-फलकों पर केवल तीन मुखों का ही दर्शन सुलभ होता है, पीछे का चौथा मुख दर्शनीय होना संभव नहीं और अशोक के सिंहशीर्ष में चार के स्थान पर केवल तीन सिंह ही दिखायी पड़ते हैं, उसी प्रकार इस मूर्ति के तीनों स्तरों पर चारचार मुख होने पर भी दृष्टिगत केवल नौ मुख ही हैं। तीनों स्तरों का पीछे वाला मुख दिखायी नहीं देता है। विष्णुधर्मोतर पुराण (३/८५/४३-४५; ३/४४/११-१२)१० तथा जयाख्य संहिता (६/७४)१ में भी विश्वरूप-विष्णु के चार मुखों का ही वर्णन मिलता है। तीन स्तरों पर इससे द्वादश या बारह मुखों का होना ही तर्कसंगत जान पड़ता है। __ अब प्रश्न है इन द्वादशमुखों की संगति बैठाने का । इनकी संगति दो प्रकार से बैठायी जा सकती हैएक यह कि पाताल, पृथ्वी और आकाश तीनों लोकों में व्याप्त चतुर्मुख विष्णु के कुल मिलाकर द्वादश मुख हो जाते हैं। इस प्रतिमा-फलक में इन तीनों लोकों का स्पष्ट अंकन किया भी गया है। अस्तु शिल्पी ने पाताल, पृथिवी और आकाश में विस्तृत त्रिलोक की परम सत्ता के विराट विश्वरूप को प्रत्यक्ष प्रदर्शित करने के लिए ही तीनों स्तरों पर चार-चार मुख बनाकर उस सत्ता के चतुर्दिशाओं में व्याप्त होने का भाव प्रकट किया है । दूसरे, इन द्वादशमुखों के माध्यम से द्वादशादित्य का अंकन भी अभिप्रेत माना जा सकता है। हम जानते हैं कि द्वादश आदित्यों में विष्णु की भी गणना है ।१२ चूँकि समस्त संसार का चतुर्दिग्मण्डल आदित्य के प्रकाश से ही प्रतिभासित और प्राणवन्त है, अस्तु-संभव है मूर्तिकार ने जीवन और जगत के सकलाधार द्वादशादित्य को विश्वरूप-विष्णु के माध्यम से यहाँ प्रकट करने का सार्थक प्रयास किया हो । शेषशायी विष्णु, नागदेवता, पृथिवी अन्तरिक्ष में उड़ती हुई सपक्ष आकृतियाँ, एकादश रुद्र, आठ वसु, दोनों अश्विनीकुमार, चारो लोकपाल, भूदेवी एवं श्रीदेवी, गरुड़, ऋषिगण, ब्रह्मा, शिव आदि अन्य देवगण और गाण्डीवधारी अर्जुन के अंकन से इस प्रतिमा-फलक पर श्रीमद्भगवद्गीता (११/६) में वर्णित विश्वरूप का विराट प्रदर्शन और अर्जुन का चमत्कृत होना स्पष्ट दिखायी देता है । 'पश्यादित्यान्वसूरुद्रानश्विनौ मरुतस्तथा' श्रीमद्भगवद्गीता का यह वर्णन तब सचमुच सम्पूर्ण रूप से इस प्रतिमा-फलक पर साकार दिखेगा जब इन द्वादश मुखों का द्वादशादित्य के रूप में देखा जाए। आशा है भारतीय प्रज्ञा और शिल्प के विद्वान इस प्रतिमा के द्वादश मुखों का कोई युक्तिसंगत, सन्तोषजनक, ४४] [सामीप्य : मोटोमर, २०००-भार्थ, २००१ For Private and Personal Use Only

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