Book Title: Samdesarasaka of Abdala Rahamana
Author(s): Abdul Rahman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 101
________________ 94 ऊलळ्या करे, तो तेथी | कणका ने कुशकानी राबडीए न बडबडq? (१६). जेवी जेनी काव्यशक्ति ते अनुसार तेणे कशा लज्जित थया विना कविता करवी घटे- चतुर्मुख ब्रह्मा वद्या तेथी शुं बीजाओए बोलवानं बंध करवं? (१७) हे सुज्ञो ! त्रण भुवनमां एवी कोई विकटबंधवाळी, सुंदर छंदवाळी अने रसवती रचना नथी जे तमे न जाणी होय के न सुणी होय. तो पछी अमारा जेवा मूर्खनी लालित्यविहीन, परुष रचना कोण तमारामांथी सांभळी रहेशे ? छतां पण वात एम छे के दुर्दशामां आवी पडेला विदग्ध रसिकोने पण ज्यारे तांबूल न मळतुं होय, त्यारे जावंतरीथी पण जेम तेम करीने आश्वासन मळतुं होय छे. (१८). तो आ 'संदेशरासक', जे मारा कवित्व अने विद्याना माहात्म्यवाळो छे, मारा पांडित्यने प्रसिद्ध करनारो छे, तेने में, वणकरे, लोकोमां प्रकाशित कर्यो छे. अने केवळ कुतूहलथी अने सरळभावे में ते रच्यो छे. एम जाणीने, हे सुज्ञो, आ पामरजने जाडीमोटी वाणीमां जे रच्यो छे, तेने तमे स्नेहभावे एक क्षण, अरे अरधी क्षण तो सांभळजो (१९) कोईक समर्थने आ 'संदेशरासक' (कदीकने) सांपडे अने ते तेनुं पठन करे तो ते सुज्ञनो हाथ पकडीने हुं कहुँ छु के एक तो पंडितो अने बीजा मूर्यो ए बनेने पारखीने तारे तेमनी पासे आ 'संदेशरासक'नुं पठन न कर. (२०). केम के कुकवित्वने कारणे पंडितो आना उपर चित्त ठेरवशे नहीं, अने अबुधोनो तेमना अबुधपणाने कारणे आमां प्रवेश नहीं थाय. माटे जे नथी मूर्ख के नथी पंडित, पण मध्यम छे एमनी आगळ सर्वथा आनुं पठन करवं. (२१). अनुरागी, रतिगृह, कामीनो चित्तहारक, मदनासक्तनो पथदीप, विरहिणीनो मन्मथ, अने रसिकोना रसनो उद्दीपक एवो आ 'संदेशरासक' तमे सांभळो. अत्यंत रसपूर्वक रचेलो, रतिभावथी वासित ए श्रवणनी परनाळ. माटे अमृतप्रवाह जेवो छे. अरे जे खरो सुरतविदग्ध नर हशे, ते ज विचक्षण आना अर्थनो मर्म पामी शकशे. (२२-२३) बीजो प्रक्रम विजयनगरनी कोई एक उत्तम सुंदरी-उन्नत, स्थूळ, कठिन एनां स्तन, भ्रमरी समो कटिनो लांक अने राजहंस समी चाल-दीनवदने पंथ निहाळी रही छे. अश्रुजळनो दीर्ध, प्रवाह वहे छे. विरहानले ए कनकांगी, शरीर एवं श्याम बनी गयुं छे, जेवो राहुथी विडंबित पूर्णचंद्र. (२४) ए दुःखार्त रडे छे अने आंख लूछे छे. एनो चोटलो छूटो थई मुख पर फेलाई गयो छे. ए बगासां खाय छे अने अंगो मरडे छे. विरहातनळे संतापेली ए दीर्ध निःश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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