Book Title: Samdesarasaka of Abdala Rahamana
Author(s): Abdul Rahman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 110
________________ 103 जवानुं मांडी वाळ. रातनो उस्त बीतावीने बीजे दिवसे तुं जवानुं राख. "हे बिंब समा अधर वाळी, चंद्रनी चांदनी सवार सुधी प्रकाशे छे. मारे जे काम छे तेथी हुं व्याकुळ होवाथी मारे जवू ज पडे तेम छे." जो तुं अहीं रही जवा न मागतो हो अने जवानी ज इच्छा राखतो हो तो मारा प्रियने एक चूडिल्लो, एक खडहड अने एक गाथा कहेजेः (११३)। जईने तुं प्रियने कहेजे के हे प्रवासी, अमने तारा विरहाग्नि तरफथी (एक मोटुं) फळ मळ्यु. एणे चिरंजीवितानुं मने वरदान दीधुं छे. केम के मारो एक एक दिवस संवत्सर जेटलो लांबो थयो छे. (११४) । ज्यां प्रेमवियोगे हृदय व्याकुळ बन्युं छे. कामदेवना बाणे शरीर अतिशय क्षत थयं छे, ज्यां नयनो बाष्पजळे गाल पखाळी रह्यां छे, ज्यां मदन नित्य मनमां विकसी रह्यो छे, त्यां हे पथिक, रातने समये पण निर्वृत्ति के निद्रा केम प्राप्त थाय ? हेप्रिय विरहिणीओ दिवसे पण जीवे छे ए मोटुं आश्चर्य छे. (११५-११६) पथिक बोल्यो. 'हे कनकांगी तें जे का, अने वधुमां जे बीजुं में दीर्छ, ते हुं तारा प्रियतम पासे प्रकाशित करीश. हे कमळनयना. हवे तुं तारे घरे पाछी फर, हुं पण रस्ते पडुं. मारा गमनने तुं अटकाव नहीं. पूर्व दिशामां अंधारुं प्रसयुं छे. सूर्य आथम्यो छे. राते चालवानुं मुश्केल होय छे, अने रस्तो दुर्गम अने जोखम वाळो छे.' (११७) पथिकनां वचन सांभळीने ए प्रेमवियोगिनी कृशोदरीए दीर्ध, उष्ण निःश्वास नाख्यो. तेना गाल पर रहेलां अश्रबिंदुओ जाणे प्रवालना ढग पर चमकतां मोती जेवां शोभतां हतां. प्रियना प्रवासथी पीडित, विलाप करती, रडती ते बोली, 'प्रियने तुं एक स्कंधक अने एक द्विपदी कहेजेः (११८) मारुं हृदय रत्नाकर समुं छे. तेनुं विरहमंदर नित्य मंथन करे छे, अने तेणे तारा प्रेमे प्राप्त मारुं सुखरत्न समग्रपणे मूळथी उखेड्युं छे. (११९) द्दष्टिरूपी स्फुलिंगथी सभर, मदनरूपी पवने धूमतो, दुर्धर ज्वाला वाळो, दुःसह मदनाग्नि निरंतर मारा हृदयमां तीव्रपणे स्फुरी रह्यो छे. अरतिनी राख उछाळतो ते (?) छे, मने धमकावे छे अने बाळे छे. आश्चर्य तो ए छे के तारी उत्कंठाथी अमारं 'सरोरुह' वृद्धि पामे छे.' (१२०) आ स्कंधक अने द्विपदी सांभळीने पथिक रोमांचित थयो. पोताना प्रिय प्रत्येनो तेनो प्रेम नथी घट्यो ते जाणीने तेनुं मन रंजित थयु. ते बोल्यो, 'हे मृगनयनी तुं मारुं का सांभळी क्षणेक धीरज धर. हुं तने कांईक पूछु छु तो तुं ते स्फुट वचनोमां प्रगट कर. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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