Book Title: Samdesarasaka of Abdala Rahamana
Author(s): Abdul Rahman
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 105
________________ 98 त्यां हे मृगाक्षी, चोदिशे प्रख्यात सूर्यतीर्थ छे. पृथ्वी पर ते मूलस्थान नामे सुप्रसिद्ध छे. त्यांथी मने एक जणे लेख दईने मोकल्यो छे. ए मारा स्वामीना आदेशथी हुं खंभात जई रह्यो छं. (६५) आ वचनो सांभळीने ए मुग्धा चंद्रवदना, कमळनयनाए लांबो अने उष्ण निःश्वास मूक्यो. तेणे हाथनी आंगळीओना टाचका फोड्या. पवनझपाटे केळ थथरे तेम क्यांय सुधी ते थथरी अने करुण, गदगद स्वरे बोलवा लागी. (६६) क्षणेक रडीने नयनो लुछीने ते बोली: हे पथिक, खंभातनुं नाम सांभळीने मारुं शरीर जर्जरित थई गयुं. मारा विरहानळनो ओलवनारो मारो पति त्यां गयो छे. घणो समय वीत्यो तो पण ए निर्दय पाछो आव्यो नथी. (६७) हे पथिक, जो तुं क्षणेक दया करीने पग पाछा वाळ तो, हुं थोडाक शब्दोमां प्रियने कांईक संदेशो मोकलुं. पथिक कहे छे : 'हे कनकांगी', रडे छे शा माटे? तुं घणी क्षीण थई गई छे, अने तारां नयन उद्विग्न देखाय छे. (६८) जेना निर्गमने विरहाग्निए मने राखनो ढगलो करी मूकी, ए निष्ठुरने हुं क्या मनथी संदेशो मोकलूं? (६९) जे प्रवासे गयो त्यारे हुं पण तेनी साथे प्रवासे न गई, तेम तेना वियोगे मरी नहीं, एवा प्रियने संदेशो मोकलतां हुं लाजुं छं. (७०) पण हे पथिक, जो हुं लाजीने रहुं तो मारा हैयाने धरपत थती नथी. तो तुं प्रियनो हाथ पकडी तेने मनावीने तेनी पासे आ एक गाथा तुं पढजेः (७१) हे नाथ, तारा विरहना प्रहारे चूरो करेलां मारां अंगो छूटां नथी पडी गयां, कारण केतुं आज के काल आवीने मळीश (एवी आशाना) औषधे संधाईने ए टकी रह्यां छे. (७२) (७३ क्षेपक) हे पथिक, ए गाथा कहीने प्रियने मनावीने अतिशय विनयपूर्वक आ पांच दोहा तेने कहेजे : (७४) प्रियना विरहानले बळेली जो हुं स्वर्गे जाउं तो मारा हृदयमां उपस्थित तने छोडीने हुं जाउं ए, हे कान्त, उचित आचरण न गणाय. (७५) हे कान्त, तुं मारा हृदयमां उपस्थित होवा छतां विरह मारा शरीरनी विडंबना करी रह्यो छे. सज्जनोने माटे बीजाथी थता अपमाननो संताप मरणथी पण विशेष होय छे. (७६) जे अंगोनी साथे तें विलास कर्यो तेने विरहे बाळ्यां, तो तुं पौरुषना आलय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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